आज का यह कैसा शहर है

आज का यह कैसा शहर है !
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आज का यह कैसा शहर है
चारों तरफ जहर ही जहर है!

नहीं कोई रिश्तों की कदर है
न कोई रहने की ठहर है!

गांव में सबका अपना घर है
वहीं रिश्तो की भी कदर है!

गांव से ही बनते शहर हैं
फिर भी कहते अच्छा शहर है!

जहां रिश्तों में केवल जहर है
हम उसी को कहते शहर हैं!

रिश्ता मतलब बीवी-शौहर हैं
और सब रिश्ते तो बे असर हैं!

मां- बाप की इतनी कदर है
अकेला ही करता बसर है!

ठोकर खाकर पीता जहर है
आधुनिकता का यही कहर है!

कहते शहर में मेरा घर है
कोई घर आ न जाये , डर है!

अतिथि देवो भव तो कहते हैं
अतिथि आ जाये वो ,जहर है!
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राम बहादुर राय
भरौली, बलिया,उत्तर प्रदेश

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