केकरा से कहीं केहू बूझत नइखे

केकरा से कहीं केहू बूझत नइखे!!
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केतनो मनाईं ,मनवा मानत नइखे
केकरा से कहीं ,केहू बूझत नइखे!

आजू ना त काल्हू ,जाहीं के बाटे
केकरा से कहीं ,केहू बूझत नइखे!

सोगहग सरीरिया माटिये के बाटे
एकदिन माटिये में मिलहीं के बाटे!

धन-दवुलत कुछवू संगे नाहीं जाई
महल अंटारी एहिजुगवे रहि जाई!

केतना अनाड़ी बाटे ,बूझत नइखे
जाहीं के बाटे ,केहुवे अमर नइखे!

भगवानो केहें भी कुछू विधान बा
नीमनो-बाउर खाती संविधान बा!

सुघर सरीरिया माटी में मिल जाई
केकरा से कहीं, केहू बूझत नइखे!

सब काया-माया भगवाने के बाटे
एकदिन आगिये में जरहीं के बाटे!

तबो अदमी केंचूल से मातल बाटे
इहो बूझात बा अब मरहीं के बाटे!

एक दूसरा के देखि के जरत बाटे
एक दिन उहो जरी ई बूझत नइखे!

अपना मनवे से बनत हुंसियार बाटे
केकरा से कहीं ,बात बूझते नइखे!

केतनो मनाईं मनवा मानत नइखे
केतनो समझाईं बात बूझत नइखे!
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राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

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