कटघरे में टंगी जिंदगियां
कटघरे में टंगी हैं जिंदगियां!
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रौंदती इंसानी उसूलों पर
दौड़ रही हैं सिरकटी लाशें!
देखते जाओ खैरखाहों को
देखो कैसे फेंक रहे पाशे!
जीते हैं फरेबी तुमुलों पर
बजाते हैं देहरी पर ताशे!
ये आदमकद आदमखोर हैं
खाते हैं भरोसे की सासें!
बना देंते हैं , जिंदे को मुर्दा
पीते हैं लाज ,शर्म एवं हया!
कौंध रही रूहों की रूह पर
छीन लेते हैं कफन की सासें!
कटघरे में टंगी हैं जिंदगियां
खोज रही अपने वजूदों को!
रौंदती इंसानी उसूलों पर
दौड़ रही हैं सिरकटी लाशें!
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राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश
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