वृहन्नला उठा ली गांडीव

वृहन्नला उठा ली गांडीव!!
------------------------------
बैठ कुंडली मार शान्त मन
तप्त को अभिशप्त करता!

नहीं कुलीन लगता मलिन
देखता कातर दृष्टि कुलीन!

कुदृष्टि,कुपित रखे जलन
राह कुराह से करे भ्रमित!

धवल धूसरित श्वेत बसन
प्राक्तन स्याह अंत:करण!

स्वयंप्रभा कहां देखे नयन
ऐसे भरे पड़े यहां विशिष्ट!

मृग धरा रूप कृत्रिम तन
करता प्रयास हरण वह्रि!

गभस्ति कहां रोका गगन
कहां रोके उदधि प्रवर्षण!

कब तक रोकोगे सरासन
वृहन्नला उठा ली गांडीव!!

देखो वो उठा ली गांडीव
करेगी तेरा ही दर्प हरण!!
--------------
रचना स्वरचित और मौलिक
राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश
@highlight

Comments

Popular posts from this blog

देहियां हमार पियराइल, निरमोहिया ना आइल

माई भोजपुरी तोहके कतना बताईं

आजु नाहीं सदियन से, भारत देस महान