मैं पथिक हूं,चलता रहूंगा
मैं पथिक हूं,चलता रहूंगा
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मैं तो पथिक हूं,
चल रहा हूं , चलता रहूंगा।
मुझे चलना होगा,
मैं झुककर, चलता रहूंगा।
रुकना ही नहीं है,
मैं दरिया सा ,बहता रहूंगा।
मैं एक पथिक हूं,
जंगल सा, हरा ही रहूंगा।
निराश नहीं हूं,
मैं पेंड़ों जैसा, खड़ा रहूंगा।
सूरज नहीं हूं,
शामो-सुबह, होता रहूंगा।
मैं जानता हूं,
आगे भी, अकेला रहूंगा।
राहों में कंटक हैं,
तो हटाकर, चलता रहूंगा।
राह का अन्वेषी,
नई राहें, तलाशता रहूंगा।
दिल में गुबार है,
अव्यक्त, मैं चलता रहूंगा।
राहें रोक रहे हो,
नई-नई राहें बनाता रहूंगा।
रुकना नहीं है मुझे,
देख लेना मैं चलता रहूंगा।
जो तेरा भ्रम है,
उसे मैं तोड़ता ही चलूंगा।
मैं पथिक हूं,
शून्य से शून्य होता रहूंगा।
मैं ऐसा शून्य हूं,
एक को दस करता रहूंगा।
कोई कुछ भी है,
दम्भ,शून्य करता चलूंगा।
मैं पथिक मेरा क्या,
देखते रहना,चलता रहूंगा।
तुम्हारी चुभन से ही,
मैं उर्जस्वित होता रहूंगा।
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राम बहादुर राय
भरौली, बलिया,उत्तर प्रदेश
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