जीतकर भी हार जाते हैं
जीतकर भी हार जाते हैं
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जिंदगी के फलसफे पर
क्या-क्या हो जाता है।
जब दिन खोजते हैं तब
दिन पीछे छूट जाता है।
जब रातें कट जाती हैं
उजाले की बलिवेदी पर।
सारा चैन खो जाता है
तो चैन खोजा जाता है।
मुझे कोई जानता नहीं
मेरी ऐसी इच्छा भी नहीं।
ये सुबह भी नहीं होती
वो शाम में कट जाती है।
जिंदगी की भाग-दौड़ में
जिंदगी ही छूट जाती है।
हम रिश्ते निभा रहे थे
वह स्तेमाल कर रहे थे।
हम दूध के धुले नहीं हैं
पर झूठ फरेब से परे हैं।
कभी हंसना चाहता हूं
तब हंसी छूट जाती है।
हम सुकून की चाहत में
अपना सुकून खो देता हूं।
मैं अपने को खोजकर
अपने ही थक जाता हूं।
खुश होके खुश रहता हूं
गम स्वयं भाग जाता है।
कुछ मोड़ ऐसे भी होते हैं
जहां सब छूट जाता है।
जीतने को जीत जाते हैं
जीतकर भी हार जाते हैं।
हमसे कोई रुठ जाता है
अपना पीछे छूट जाता है।
जिंदगी के फलसफे पर
क्या-क्या हो जाता है।
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राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश
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