जहंवा सूरज कु किरन,बजावे भिनूसार
जहंवा सूरज के किरन, बजावे भिनूसार
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जहां ठोकर, पोखर बा, उहवें बाटे छांव
लागेला बड़ ठहाका , उहे कहाला गांव।
जहंवा सूरज के किरन, बजावे भिनूसार
जहां उमिर कहे तजुर्बा,मिले खूबे सम्मान।
कोइली के मधुर तान ,काग उचरे मुड़ेर
कुकुरो करे रखवारी, नेह-छोह क बड़ेर।
मूस कुटुके नेह-छोह ,तबो कहासु गनेस
मनइ के बात छोड़ऽ , पंछी कहे सनेस।
मड़ई-टाटी बनल बा , इंच इंच के प्रेम
माई-माटी के महक, लिपटे खूब सप्रेम।
सीकम भर मिले गोरस,दही के लगे ढ़ेर
बाटी-चोखा खाई के, होखे सभे कड़ेर।
घर आगन केहू आवे ,रतियो लागे भोर
मिश्री अस बोली सुनिके ,फूटेला अंजोर।
गौरैया क चांव-चांव, प्रीत से लदल गांव
रिस्ता-नाता इहें जन्मल,गांवे में बा छांव।
अभाव होखे केतनो,संतोष भरल भाव
निठोठ बोलेला बोल , इहे गांव के छाव।
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राम बहादुर राय
भरौली ,बलिया ,उत्तर प्रदेश
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