मेरी तो संस्कृति हो तुम
मेरी तो संस्कृति हो तुम!!
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मेरे अन्तस में बसे हो तुम,
ध्यान से अन्तर्ध्यान,
जहां भी देखो तुम ही तुम!
तुम्हें लगता है तुम ही हो,
तो देख अपना अक्स,
मेरे तो अक्स भी हो तुम!
ख्वाब ख्याल में बसे तुम,
संधान या परिधान,
मेरी लिए संस्कृति हो तुम!
मेरे कंठ उर के सृजन तुम,
मोह कहो या विछोह,
प्रेम के अमृत स्रोत हो तुम!
शुष्क सजल नयन में तुम,
झील कहो या सागर,
मेरे नयनाभिराम हो तुम!
अनचाहे मेरे चाह हो तुम,
इकरार और इंतजार,
मेरे जीवन के संसार तुम!
रेगिस्तान में ओसिस तुम,
मूल कहो या क्षेपक,
मेरी दुनिया जहान हो तुम!
अतुलित आधार भी तुम,
मूक रहूं या वाचाल,
मेरे जीवन की पतवार तुम!
तिमिर तम के उजास तुम,
निर्गुण कहो या सगुण,
जीवन के एहसास हो तुम!
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राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश
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