कतनी नीमन गांव रहल रहल,नेह छोह के भाव रहल
कतना नीमन गांव रहल, नेह-छोह के भाव रहल
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पहिले कच्चा मकान रहल,आदमी मगर सांच रहल।
सभ त संगहीं रहत रहल ,सभ सभके मानत रहल।
जेकरा जवन जुरे आंटे , मिलजुल आपुस में बांटे।
अंगना चहल-पहल रहल,सभे रीजल-पीजल रहल।
धर्मशाला , इनार होखे ,सुखो-दुख के बात होखे।
चाय ना चाह रहत रहल ,दूसरा के परवाह रहल।
बड़का घर-दुवार होखे,दिल सबकर उदार होखे।
आदमी त आदमी रहल ,जवन लउके उ उहे रहल।
मोट पहिरे मोटे खाव, लेकिन नीक रहे सुभाव।
दुवारे पर त हांच रहल ,दूध-दही के पांक रहल।
आदमी त आदमी रहल ,नेह भरल बरसात रहल।
चाहे कच्चा मकान रहल ,सब नेह के जमात रहल।
कतनो उछाह होखे या ,कि कतनो उजास होखे
जबान के कीमत रहे , जबान के निठाह होखे।
कतना नीमन गांव रहल, नेह-छोह के भाव रहल
मारो-झगड़ा होत रहल ,लेकिन संगहीं खात रहल।
देंहि ,पइसा ,धन-दवुलत , केहू देखवत ना रहल
केहू गोड़ ना खिंचत रहल,गिरल के उठावत रहल।
मकान भले कच्चा रहल ,मगर आदमी सच्चा रहल
लोगन क प्रेम सांच रहल ,चोरिका ना डिठार रहल।
हीत-मीत,दुश्मन जवन भी रहत रहे,चिन्हात रहल
जवन होखे सोझा-सोझी, नाहीं भितरघात रहल।
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राम बहादुर राय
भरौली, बलिया, उत्तर प्रदेश
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