आइके तूं करिहऽ,गांवही कमइया
आइके तूं करिहऽ , गांवही कमइया
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बाबा के अंगनवा में मड़हल मड़इया
ओहि रे मड़इया उचरेले काग भइया।
चलते अंगनवा, हम ताकिला दुवरिया
अचके में परे याद ,नइखन सांवरिया।
अपने तऽ चलि गइलऽ , करे कमइया
हमरा के पठवलऽ ,नइहरवे ए संइया।
केकरा से कहीं, हमहूं आपन बतिया
सुतत, जागत तोहके देखीं संहतिया।
सखिया, सलेहर सब लागसु मुदइया
कबो हंसेली ,कबो खींचसु कलइया।
चीं-चीं बोलिके, हमके रिगावे चिरैया
कतनो पोल्हाईं , ना माने गौरैया।
काटे धवुरे हमरा के ,फुलवा पतइया
नीक नाहीं लागेला ,मिसरी मलइया।
नाहीं जनबऽ,कइसे जिहिले ए सइयां
हमरा रोवले त टूटे ,बन के पतइया।
तोहर कमाई खाई,सब घरवे के लोग
तहके याद करत,हमरे धरी अब रोग।
आइके तूं करिहऽ ,गांवहीं कमइया
तोहरे खातिर बेचब ,गहनो ए संइया।
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राम बहादुर राय
भरौली, बलिया,उत्तर प्रदेश
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