तन्हाई में नइखे सुख, तबो इहे बा चाह
तन्हाई में नइखे सुख, तबो इहे बा चाह
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ना जाने तन्हाई के , कहां लगावे दाव
मन ओकर घबराई त , जोहे आपन गांव।
गांव में जाके देखे , देखलस राम राज
परल फेर में करीं का ,चली ना इहां राज।
फिर तन्हाई चल देलस, जहां रहल आराम
लागल झोंझ के लेंढ़ा, भइल सभे बेराम।
धन दौलत अक्षइत रहे, तबो भइल कंगाल
कोना - अंतरा में भी , सब लउके जंजाल।
सबका सबसे अड़ंगा , रहल ना तालमेल
बैरी भइल बोलचाल, अब भइल घालमेल।
सब तन्हाई में रहता , बाटे एके साथ
हंसत बा रोवला अस, छूटल सबके हाथ।
तन्हाई में नइखे सुख ,तबो इहे बा चाह
घुटि-घुटि के मुवत बाटे, तबो उहे बा राह।
तन्हाई के तनिको भी, तन्हा नइखे पसंद
सब कुछ सोझा देखता,तबो भइल मतिमंद।
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राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश
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