झड़ पतझड़ निर्झर हैं कुंजें, घर-घर मंगल मंगल गूंजें
झड़ पतझड़ निर्झर हैं कुंजे ,घर-घर मंगल मंगल गूंजे!
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तजि विरहन जागी है वामा,देखत दिनकर भागी यामा।
सुख दुख हैं आपस में भाई, कुछ तो धीरज रखना भाई।
साधक साधन मन उपजावे, रोवत पुत्र माता दुलरावे।
झड़ पतझड़ निरझर हैं कुंजें,घर-घर मंगल मंगल गूंजें।
बौरे आम खूशबू झूमे , जन जन में है यौवन चूमे
आया दिन शुभ खंजन जागे,दुख सबका है अपने भागे।
डाली डाली कोयल बोले, गान तान सुन तन मन डोले।
हर हर बम बम शंकर भोले,जिसको चाहे जो वह लेले।
रहती थी बागों में खुशियां,करती चह चह जैसे चिड़ियां
इठलाती बागों में कलियां, करती खूब हैं अठखेलियां।
देख सुखी हैं दुखी अभागे,इनसे तो किस्मत भी भागे
सब कुछ पाकर भी हैं हारे, दुख के लगते हैं हरकारे।
सोचो कैसे बीती होगी , कैसे वह रात कटी होगी
क्षुब्ध क्षुधा भी तरसी होगी, भूख पेट की तड़पी होगी।
उसे दुनिया से क्या लेना, भूख की भट्ठी में जी लेना
जैसे रखेंगे राम वैसे , हमको ढ़ल जाना है वैसे।
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राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश
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