तुम तृप्त संतृप्त नहीं हो,मैं खुद ही निस्पृह हूं!

तुम तृप्त ,संतृप्त नहीं हो ,मैं खुद ही निस्पृह हूं!
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लोग देखते सुनते हैं, कि दरिया भी होता है
हम क्या बतायें तुम्हें , मैं खुद एक दरिया हूं।

मुझे किरदार न समझो ,मुझमें किरदार होता है
मुझे क्या समझते हो ,मैं तो खुद एक समझ हूं।

नदियों का कलरव नहीं, समन्दर सा गहरा हूं
मझधार में क्या छोड़ोगे ,मैं खुद मझधार हूं।

हकीकत मुझे न बताओ,मैं खुद ही हकीकत हूं
आशा,तृष्णा न बताओ ,मैं तो खुद में आशा हूं।

मुझे न डराओ,मैं हवा के विरुद्ध ही चलता हूं
रास्ते कंटीले न दिखाओ ,मैं खुद कंटकित हूं।

तुम तृप्त, संतृप्त ही नहीं , मैं खुद ही निस्पृह हूं
दर्द क्या दोगे मुझे ,मैं दर्द का एक परिंदा हूं।
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राम बहादुर राय
भरौली बलिया उत्तरप्रदेश
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