मोंछ बनावे दूध से,नटखट रहे सुभाव।
मोंछ बनावे दूध से,नटखट रहे सुभाव।
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नून रोटी चेऊंआ,खाईंजा सुबहो साम
ओरि छाजन भरल रहे ,रहे सब इंतजाम।
मोट अनाज खाये सब,रहर-उरद के दाल
माड़-भात पहेंटे सब,चोखा करत कमाल।
लिट्टी रहे बाजरा के,रहे चभोरल घीव
खाके दही भंइस के,जागे सबकर सीव।
लड़िका सब चोंका पिये,जइसे गाय दुहाव
मोंछ बनावे दूध से,नटखट रहे सुभाव।
घीव भरल हलुआ रहे,संगे आम अचार
रहल कटोरा फूल के,खाये बिना विचार।
सील लोढ़ा काम करे,कुछू पिसे के काम
पिसे पिसान घरहीं सब,जांता ओकर नाम।
कूटे खाति अनाज के,रहे ओखर मूसर
काम करे सब अपने से,साथ देबे दूसर।
आम महुआ के बीने ,भोरे में सब जाव
चुवल आम घरे आवे,पेट भर लोग खाव।
लाटा रहे महुआ के, घर-घर में कुटाव
बने अमावट आम के,सावन में सब खाव।
सांवां-टांगुन धूस पर,रहे खूब बोआत
मारे झपसी मेघ के,जब होखे बरसात।
सोना अस टांगुन लगे,पाके ओकर बाल
लाई खात अघाय सब,रहे रोग के काल।
फांड़ भर दाना लेके,सांझी के सब खाव
नून,तेल,मरिचा रहे,सिल पर खूब पिसाव।
लाई गुरलाई बने ,देसी गुड़ के पाग
भोर में दतुवन कइके ,खाते गावे राग।
बोले अइसन बोल सब,सबके हिया जुड़ाव
नेह-छोह आ प्रीत से,सबके जिया अघाव।
बांस कोरो से छावल,माटी सनल दुलार
सुख के नींन मड़ई में,चमकर रहे लिलार।
घर आंगन लोटे खुसी,मुरगा करत बिहान
छोंड़ि गगरी भरल रहे,करत लोग मधुपान।
गाय गोरू रहे भरल ,होखे सेवा भाव
खरी-खुद्दी,घास-भूसा,मुड़ी गाड़ि के खाव।
भींड़ लागे दुवार पर, पूस रहे भा माघ
जौ-जौ आगर सब रहे,जइसे होखें घाघ।
रहे कउड़ा दुवार पर,करसी दहकत आग
रहे पाला भा तुषार, जात रहे सब भाग।
जिये लोग आराम से,करत रहे सब काम
खोट मन में होखे ना,रहे ना तामझाम।
राम बहादुर सुनि लऽ,छोड़ऽ बितल बात
जुग जमाना बदल गइल,छोड़ऽ तूं जज्बात।
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राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश
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