भागि रहल बा लोग सब, छोड़ छाड़ के गाँव
भागि रहल बा लोग सब ,छोड़ छाड़ के गाँव!
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भागि रहल बा लोग सब ,छोड़ छाड़ के गाँव
खेत - बारी , घर-दुवार, जपत तोहरे नाँव।
ठाढ़ हवेली गाँव के , निरखत आपन देह
नेह प्रीत के जोड़ से ,माटी लिपटल गेह।
दू कमरा में रहत बा , फलैट जेकर नाम
घर में किरन फूटे ना, नोकर जेकर काम।
रहल ठहाका खुसी के ,भरल हवेली लोग
उड़त चले खुसबू जहां ,उहे रहल मनभोग।
बहुत अभाग बा बबुआ, छोड़ गाँव के राज
सहर में जाके तूंहूं ,बनि गइलऽ बजाज।
छांह मिले ओरियानी, बरखा रहे कि धूप
गुन के पूजा होत रहे ,जइसे फटके सूप।
नून-रोटी-पियाज में , डालल रहल सनेह
दूध - दही चांपत रहल , होखे ना मधुमेह।
उड़े धूर अंगना में,उगत सुरुज के घाम
घर-घर राधा कृष्ण सब ,घर-घर खेले राम।
नेह चुवे ओरियानी , मातल रस से फेंड़
भींज गइल सब प्रीत में,डाकल पानी मेंड़।
मिली दुलार देखे के, आवऽ कबो गाँव
नेह-छोह से भरल बा , गाँवे जेकर नांव।
बूढ़ बुजुरुग हवुवन जा,हमनी के वरदान
बुद्धि के भंडार बाड़न ,दुख के इहे निदान।
गाँव गढ़ हवुए बबुआ, गाँवे हवुए सान
अबो से गाँवे चलऽ , हवुवऽ तूं किसान।
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राम बहादुर राय
भरौली,बलिया उत्तर प्रदेश
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