अबो समय बा सोचऽ,कइसे बचि विरासत
अबो समय बा सोचऽ,कइसे बचि विरासत
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छोट छोट खोंड़िला में,रहता बड़का लोग
गाँव पसन परत नइखे,लागल सहरी रोग।
घर-बार सब रोवत बा,सोचि पुरनकी बात
बचल रहे विरासत ई,बचल रहे जयजात।
बचल हऽ पसेवा से,करत बाड़ऽ राज
नून रोटी खाके सब,खाके मोट अनाज।
पांव फाटल बेवाई,चलसु लंगटे पांव
लाल ललछहूं लउरिया,लेके घूमसु गाँव।
पहिन के भगई धोती,आधा टांग उघार
बचल रहे खेत बारी,होखे भले निघार।
तबो बेचलन खेत ना,खूबे रहल अभाव
काट लिहलें जिनगी सब,रहि के एके भाव।
छोड़ के आपन धंधा,देसु मोछ पर ताव
करे गुलामी सहर में,तबो उहे बा छाव।
गाँव घर में रहत रहे,रहे उहां मलिकार
गइल सहर नोकर बने,छूट गइल अधिकार।
गाँव छूटल,घर छूटल,छूटल नेह सनेह
छूट गइल माई बाप,छूटल सबसे नेह।
आज के अदिमी बाड़न,बनत ढ़ेर हुंसियार
खेत बारी बेचत बा,बनल रंगल सियार।
खेत रहल माई-बाप,बेचल कहाव पाप
बड़ बने के फेरा में,करत खूंटियाखाप।
पिपर,पाकड़,महुआ के,गइल जमाना बीत
दूब,मोथा,टांगुन के,नइखे लउकत रीत।
का हऽ कवुआ,कोइल,नइखे एकर ज्ञान
खेत बेचि गाड़ी चढ़े,बने खूब धनवान।
जव-गहूं बुझाव नाहीं,माटी में का भेद
बेचि विरासत बड़ बने,करे नेह में छेद।
चले जइसे राजा बा,लागे नाहीं लाज
लक-लक करेला कपड़ा,देखऽ साज बाज।
घर में लोग भूखे बा,करत फिरेलन दान
धन लूटलन धोखा से,तबो बनसु नादान।
बड़ बने में छोट भइल,कहाता खेत बेच
एक बीता कीने में,हो जाई धुरपेच।
अबो समय बा सोचऽ,कइसे बचि विरासत
काम करऽ कुछ अइसन,बचल रहे रियासत।
झेलि लिहऽ दुख तूं,सहिहऽ तूं कलेस
कह राम बहादुर राय,बचि माटी बचि देस।
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राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश
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