कउवा बीने मोती, हंस इहां छिछियाता!
कउवा बीने मोती , हंस इहां छिछियाता!
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रहिया सनेहिया के छोटे होखल जाता
लिलरा पर सभके चाने - सूरूज बन्हाता।
जहां जहां देखीं हम विवादे कइल जाता
दोस्त-दुसुमन इहंवां अब नाहीं चिन्हाता।
रहे के घर नइखे सहे खातिर खर नइखे
बात बात पर घोड़ा आ हाथिये किनाता।
सुनले रहीं सबसे नीमन कवि लोग होला
एहू लोग के आजकल बदल गइल चोला।
बड़का सहरन में कवि सम्मेलन खूब होता
होटल में रहिके लागता दारु में गोता।
करताड़न बड़के लोग ही अइसन तमासा
इहे लोग के करनी अखबार में छपाता।
आपन आपन गोल इहंवा खूब सजाता
सेसर बिसेसर गोले से ही लिहल जाता।
हिन्दी से आइके बने भोजपुरी विधाता
एही लोग के घरे कवि के भाग लिखाता।
लमरदार भोजपुरी के सहर में रहेलन
गाँव घर गइलन ना, भोजपुरी का बुझाता।
पद पुरस्कार कउड़ी के भावे में बिकाता
खांटी भोजपुरियन के ही खाटी कटाता।
लेसल, बेधल , डाढ़ा इनके कहां बुझाता
इहो लोग के नांव कविये में गिनल जाता।
जहां देखतानी उहां धरना दिहल जाता
अपने दिहल भासन अपने में सुनल जाता।
रहिया सनेहिया के बिगड़ल जाता दासा
कउवा बीने मोती, हंस इहां छिछियाता।
मति करिहऽ राम बहादुर,न्याय के आसा
करत रहऽ काम तूं,पसिज जइहें विधाता।
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राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश
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#जयभोजपुरी
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