चिन्ता में बाड़ी माई, कइसे हम बचवन के जियाईं
चिन्ता में बाड़ी माई, कइसे हम बचवन के जियाईं! -------------------------------------------------------------- घर में कुछ नइखे माई, लागत बा भूख से जम्हाई अब का करीं ए माई , लागता अब दियवो उंघाई। बहिनी हमार सुतल बाड़ी ,भूख से खूब टूटल बाड़ी दिनो राती काम कइके, खइला बिना रीरिकल बाड़ी। भइया हमार गुमसुम बाड़ें , करबि अब कइसे पढ़ाई जब जब लागे भूख इनका , करेलन भूख से लड़ाई। पहिले वाली बात नइखे, अदमिन के बुझाते नइखे नरेगा मनरेगा आइल ,काम ओम भी मिलत नइखे। चिन्ता में बाड़ी माई, कइसे हम बचवन के जियाईं खेत बारी हइये नइखे , मरद हमार करे पियाई। बांचल खुचल आसरा रहल, गंवुआ के स्कूलिया रहे बाबू लोगन पढ़तो रहलन, खाना पइसा मिलत रहे। बन्द अब विद्यालय भइल,करिहें अब कहंवा पढ़ाई अइसन महंगाई आइल , देहियों बुझाता बिकाई। घरवा के छान्ही गिरल, लागल हमार करेला टूटल चुवता कोना अंतरा , छावे के जोगाड़ ना जूटल। एके गो बिछवना रहल,सब केहू ओपर सुतत रहल सावन महिना के बेरी,भींज के सभनी जागत रहल। बिछाई के चाट चटाई , होखे जमीन पर सुताई लड़िका त सुति जात रहले ,माई जागि रात बित...