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Showing posts from July, 2025

चिन्ता में बाड़ी माई, कइसे हम बचवन के जियाईं

चिन्ता में बाड़ी माई, कइसे हम बचवन के जियाईं! -------------------------------------------------------------- घर में कुछ नइखे माई, लागत बा भूख से जम्हाई अब का करीं ए माई , लागता अब दियवो उंघाई। बहिनी हमार सुतल बाड़ी ,भूख से खूब टूटल बाड़ी दिनो राती काम कइके, खइला बिना रीरिकल बाड़ी। भइया हमार गुमसुम बाड़ें , करबि अब कइसे पढ़ाई जब जब लागे भूख इनका , करेलन भूख से लड़ाई। पहिले वाली बात नइखे, अदमिन के बुझाते नइखे नरेगा मनरेगा आइल ,काम ओम भी मिलत नइखे। चिन्ता में बाड़ी माई, कइसे हम बचवन के जियाईं खेत बारी हइये नइखे , मरद हमार करे पियाई। बांचल खुचल आसरा रहल, गंवुआ के स्कूलिया रहे बाबू लोगन पढ़तो रहलन, खाना पइसा मिलत रहे। बन्द अब विद्यालय भइल,करिहें अब कहंवा पढ़ाई अइसन महंगाई आइल , देहियों बुझाता बिकाई। घरवा के छान्ही गिरल, लागल हमार करेला टूटल चुवता कोना अंतरा , छावे के जोगाड़ ना जूटल। एके गो बिछवना रहल,सब केहू ओपर सुतत रहल सावन महिना के बेरी,भींज के सभनी जागत रहल। बिछाई के चाट चटाई , होखे जमीन पर सुताई लड़िका त सुति जात रहले ,माई जागि रात बित...

कउवा बीने मोती, हंस इहां छिछियाता!

कउवा बीने मोती , हंस इहां छिछियाता! ------------------------------------------------------ रहिया सनेहिया के छोटे होखल जाता लिलरा पर सभके चाने - सूरूज बन्हाता। जहां जहां देखीं हम विवादे कइल जाता दोस्त-दुसुमन इहंवां अब नाहीं चिन्हाता। रहे के घर नइखे सहे खातिर खर नइखे बात बात पर घोड़ा आ हाथिये किनाता। सुनले रहीं सबसे नीमन कवि लोग होला एहू लोग के आजकल बदल गइल चोला। बड़का सहरन में कवि सम्मेलन खूब होता होटल में रहिके लागता दारु में गोता। करताड़न बड़के लोग ही अइसन तमासा इहे लोग के करनी अखबार में छपाता। आपन आपन गोल इहंवा खूब सजाता सेसर बिसेसर गोले से ही लिहल जाता। हिन्दी से आइके बने भोजपुरी विधाता एही लोग के घरे कवि के भाग लिखाता। लमरदार भोजपुरी के सहर में रहेलन गाँव घर गइलन ना, भोजपुरी का बुझाता। पद पुरस्कार कउड़ी के भावे में बिकाता खांटी भोजपुरियन के ही खाटी कटाता। लेसल, बेधल , डाढ़ा इनके कहां बुझाता इहो लोग के नांव कविये में गिनल जाता। जहां देखतानी उहां धरना दिहल जाता अपने दिहल भासन अपने...

हो साली जब साथ में,मन पुलकित हो जाय!

हो साली जब साथ में, मन पुलकित हो जाय। ----------------------------------------‐-------------- #चकल्लस -------------- पत्नी और साली खड़ी , किसको लागो पांय। हर समय तो पत्नी खड़ी, साली रोज न आय।। सिर पर पत्नी खड़ी रहे ,आप कहां तब जांय। दूर खड़ी साली रहे , पत्नी नहीं सकुचाय।। होगी खटिया तब खड़ी, साली देख मुस्काय। पत्नी ही अड़ जाय अगर,फिर तो नहीं उपाय।। हो साली जब साथ में, मन पुलकित हो जाय। पत्नी हो सामने खड़ी, प्रभु भी बोल न पाय।। सुखी रहने का उपाय ,पत्नी भगत बन जांय। पत्नी बात मानो सदा , मानो सीस झुकाय।। पत्नी कहे खड़े रहो , कहे बैठ तब जांय। पत्नी सेवा खूब करो, कुछ भी करो उपाय।। सुख में वह इन्सान है, जिसकी साली होय। जिसकी साली है नहीं, बड़ा अभागा होय।। सफल जीवन है उसका, साली हो जब साथ। मौज करेगा मस्ती में, साली जिसके हाथ।। पत्नी और साली खड़ी ,किसको लागो पांय। पत्नी तो दिन रात रहे ,साली एक उपाय।। पत्नी देख चौकस रहो ,साली देख उमंग। जंग करेगी पत्नी तब ,ओढ़ो साली रंग।। ...

नेह लगावऽ प्रभु से,होई बेड़ा पार!

नेह लगावऽ प्रभु से , होई बेड़ा पार! ------------------------------------------------------ कबो खुसी के धूप बा ,कबो दरद के छांह। कबो जितले के आसा, कबो हार के राह। कबो दुनिया नेक लगे, लागे कबो रुवांस। मिलल चोट त अपने से, दूसर से का आस। तबे तक लगबऽ नीक, बढ़े क नइखे चाह। डेग बढ़वलऽ आगे , रखे लगी सब डाह। झूठ सब खैरखाह बा ,स्वार्थ भरल बा चाह राह बनावऽ अपने , हटा दऽ तूं जाह। कहे के आपन सब बा, झांसा बा सब देत इहे तऽ जिनगी बाटे,फिसलत जइसे रेत। नेह लगावऽ प्रभु से , होई बेड़ा पार राह कंटक हटि जाई , होई खुसी अपार। काम करऽ कुछ अइसन,होखे सबके सीख मति जइहऽ ओह जगह, मांगत बीते भीख। धन दवुलत त रेत हऽ, लउके जइसे धूह पता ना कब उड़ि जाई,उड़े जइसे कि रूह। रहि जाई सब एहिजे, होखऽ जनि अधीर हारि अन्त में जइबऽ, बनऽ जनि रणधीर। काम करबऽ गलत तूं, मन्त्र जइबऽ भूल कांट बोइबऽ अपने, मिली कहां से फूल। गुन गवाई मुवला पर, कही सुनी सब लोग नीक के नीक कहाई, करऽ नीमन योग। सुनि लऽ राम बहादुर, करऽ सबसे प्यार मन के रखिहऽ साफ, दुसुमन चाहे यार। ...

बनल कवि भोजपुरी के,नइखे जी आसान!

बनल कवि भोजपुरी के ,नइखे जी आसान ----------------------‐----------------------------- बनल कवि भोजपुरी के ,नइखे जी आसान बनल एगो घेरा बा , सब कोण बा इसान। आइल हऽ आ आई, अउरी बहुत किताब गुट बाटे भारी बनल , पइबऽ ना खिताब। नाम ओकरे उ छपिहन ,देखि देखि के नाम लिखे से का मतलब बा, जपी इनकरे नाम। मुंह देखि पुरस्कार मिलत,होखता वाह वाह बड़ बड़ कवि मुंह ताकत, मुंह से बोले आह। अब तूं कइसे पचबऽ ,रखिहऽ जनि आस रही कोसिस में खूबे ,रोकी अन्तिम सांस। घात प्रतिघात होत बा ,होता विश्वासघात सांच के झूठ बनाके ,करत लोग आघात। जात जमात खोजाता,होखे ना कुछ काम नाम डलाई उनकरे , करत रहीं बदनाम। का करबऽ तूं जानि के ,बानी हम बइमान मिलल बा कुरसी हमके ,बेच देइब इमान। हम हीं हंई विधाता , लगा लऽ तूं जोर बढ़े ना देब तोहके , करत रहबऽ सोर। लिखत बाड़ऽ त लिखऽ,ना होखबऽ पास पास करब ओकरे के ,जे हमार बा खास। नया नइखे कवनो ई, आदत हऽ पुरान इहे कइले बानी हम, होखऽ जनि हरान। कहां कहां तूं जइबऽ , नइखे एकर थाह बना देब तोहरा के , पागल आ बउराह। उपर से कुछ और हंई ,भीतर से कुछ और ...