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जब जब देखीं लउके तोहरे सुरतिया

जब जब देखीं लउके तोहरे सुरतिया --------------------------------------------- जब जब देखीं लउके तोहरे सुरतिया संगहीं के सब लोगे भइलन सवतिया। छम-छम बाजे जब तोहरे पायलिया मनवा सिवान होके देखेला रहतिया। जब जब हिलेला तोहरे कनबलिया तब तब छछने जियुवा हो संहतिया। जब जब देखिले हम मोहनी मूरतिया चहकेला मनवा जुड़ाई जाला छतिया। जब जब पहिरेलू धानी रंग चुनरिया अंचरा में तोहरा लउके किसमतिया। रात में चलेलू त उगेला अंजोरिया तोहरे के देखिके होखे भोरहरिया। केसिया देखत लजाले कारी बदरिया तोहरे से बुझाला दिन हवे कि रतिया। हंसेलू धइके अंचरा के कोरिया सुख-चैन उड़ जाला बेध देलू छतिया। मन करेला देखती तोहके दिन रतिया काहें मिलल तोहरा के सुघर सुरतिया। --------------------- राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

नयन के देखिके नयन लोर हो गइल

नयन के देखिके नयन लोर हो गइल ------------------------------------------- नयन के देखिके नयन लोर हो गइल याद में उनका देखते भोर हो गइल। सोचले ना रहीं कि एतना निष्ठुर होई अउरी निष्ठुर,निर्मोही कठोर हो गइल। का कहीं नयन के , धोखा खा गइल जेके चितचोर बूझनी, चोर हो गइल। नयन से नयन के सुख मिलते रहल जिनिगी हमार त लोरे-लोर हो गइल। बूझनी की जिनिगी में प्रीत मिलल नयन जबसे मिलल,अंजोर हो गइल। प्यार में मिलके हमसे दूर हो गइल नयन मिलते अउर कठोर हो गइल। रोवत-रोवत नयन याद करत रहल नयन के देख नयन थोर हो गइल। ------------------- राम बहादुर राय भरौली, बलिया ,उत्तर प्रदेश

धूप में नेह से नेह लगावल करिला

धूप में धूप से नेह हम लगावल करिला ------------------------------------------------ मई क धूप में धूप से नेह लगावत रहिला जे दुरदुरावे ओकरो के सजावल करिला। हम त एगो किसान-मजदूर के बेटा हंई केहू कतनो अंझुराइ,संझुरावल करिला। दुश्मन भी होई तबो नेह लगावत रहिला केहू के गिराईं नाहीं हम उठावल करिला। माटी-डांटी में खेलल-कूदल हमहूं बानी केहू से रीत-प्रीत खूबे लगावल करिला। धूप के ताप-साप सहे के आदतो बाटे धूप में दीप के बूते से बचावल करिला। धूर, गरदा, धूप त हमार जनमे के साथी शीत घाम संगे नेह से सुतावल करिला। मई क धूप में धूप से नेह लगावत रहिला प्रचंड धूपो के नेह से अपनावल करिला। आदमी के जात हम आदमी में रहतानी केहू केतलो उलझाई,सुलझावल करिला। ---------------------- राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

एक दिन, दिन जैसे ढ़ल जाना है

एक दिन,दिन जैसे ढ़ल जाना है! --------------------------------------- बड़े होने पर क्यों इतराता है आखिर तुझे भी नीचे ही आना है। परिंदा भी आसमा में मड़राता है वह भी जमीन पर ही तो आता है। जिस धन दौलत का घमंड तुझे है कौन है जो उसे लेकर जाता है। धन-दौलत एक माया का खेल है सबको एक ही जगह तो जाना है। कितने भी उपर उठ जाओगे तुम एक दिन मिट्टी में ही मिल जाओगे। यहां कितने आये और चले गए सब कुछ तो यहीं पर छोड़ जाना है। कौन जानता है क्या होगा आगे मैं - मैं, तूं -तूं का क्या फ़साना है। ऐ परिंदे ! इतना गुरूर  मत करना साथ तो  तुम्हारा कर्म ही जाना है।  बहुत देखे हैं  सिकन्दर  हमने यहां  मुठ्ठी  खोल, यादें  लेकर  जाना है। धन-दौलत,  रिश्ते-नाते   बहाना हैं  प्रभु को  हमें   माया  में फसाना है। सत्य सनातन के  रास्ते पर चलकर आखिरी  मंजिल  मोक्ष ही पाना है। तुम धरती पर या आसमान में रहो  एक दिन, दिन जैसे  ढ़ल जाना है।                    -------------- राम बहादुर राय भरौली बलिया उत्तरप्रदेश

लइका-लइकी में अबो भेद होता

लइका-लइकी में अबो भेद होता --------------------------------------- बेटा-बेटी दूनो पढ़ावल जाता कहे खातिर एके कहलो जाता! लइकन के दहेज अबो मंगाता लइकिन के दहेज बढ़ले जाता! तिलक-दहेज खूबे बढ़ल जाता केतनो द देबऽ कम परि जाता! दूल्हा खोजे में पनही खियाइल बाबू जी के उमिरो घटले जाता! लइकी नोकरी करत खोजाता बाबू-माई अब नांवे के कहाता! एगो बियाह में छेगाड़ बेचाइल आगे खाति कुछ खेतो धराइल! लइकनो में भी करजे काढ़ाता बिगहा-बिगहा बेधड़क बेचाता! खेतवो के प्लाटिंग कइल जाता खेत-बेच के खूब बंगला गढ़ाता! लइका-लइकी बराबरो कहाता खेत बेचवा के दहेजो लियाता! बाबू-माई अब कंहवा पूछाता सासु-ससुर माई-बाबू कहाता! एइसने लोगवा बड़का कहाता कोख में बेटी के मारत जाता। दहेज ना लियाई कहलो जाता दहेजे खातिर जान हतल जाता। ------------------ राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

बड़ा होने के लिए बड़ा जिगर रख

बड़ा होने के लिए बड़ा जिगर रख। ------------------------------------------ बड़ा होने के लिए बड़ा जिगर रख बड़े तो बर्दाश्त करते हैं, तूं भी कर। तूं मदद करने का भी हौसला रख किसी को गिराओ नहीं,उठाया कर। जलने वालों की तादाद बहुत है जिसको जलता देखना,बचाया कर। नेकी कर लेकिन फूंक के कदम रख अपने व गैरौं में भेद समझा कर। फल लगे तो डालियां झुक जाती हैं बड़े हो पेंड़ जैसे झुक जाया कर। मदद करके किसी से उमीद मत रख मालिक देखता है ,तूं भरोसा कर। सोना हो तो जिगर फौलाद का रख बड़ा होना के लिए कुछ कुर्बान कर। बड़ा होने के लिए बड़ा जिगर रख बड़े तो बर्दाश्त करते हैं ,तूं भी कर। ---------------- राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश
सबसे धनवान देखा जब उसके पास गया मैने तो भगवान देखा  प्यार का भंडार देखा।  उसका चेहरा देखा उसका ईमान देखा सच्ची जुबान देखा। नहीं कभी रोते देखा न कभी मांगते देखा सबसे धनवान देखा। फंतासी के युग मे भी  दुपहर में तपते देखा। उसमें भगवान देखा उसके घर के रूप में पेड़ों की छांव देखा वहां मैं पूरा गांव देखा।  खेतों में ही उसके मैंने मानव का प्रान देखा खुशी का मचान देखा। अन्न की हर बाली में लहू को बेजुबान देखा लेकिन सम्मान देखा।  सोने जैसा तपते देखा खुद उसे गलते देखा अन्न में बदलते देखा। छेड़ दिया किसी ने तो उसको ही बरछी जैसे बड़ी तेज चलते देखा। प्यार से दो बोल बोलो मैंने एक देवता देखा सूखे रेत में पानी देखा। दुनिया में बहुत देखा  उसमें ही दुनिया देखा  आदमी में तपसी देखा।           ------------ राम बहादुर राय  भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश