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Showing posts from December, 2024

मन उचटे,बया छछने, लुटा गइल सुख चैन

मन उचटे,बया छछने ,लुटा गइल सुख-चैन -------------------‐-------------------------------- बसि गइलऽ दिलवा में, दिल रहल ना हमार दिल से हाल पूछनीं त, दिल भइलन बेमार। नीक बड़ा लागत रहे, घूमिंजा दिनों-रात रोग अइसन धइलस अब, बिसरे नाहीं रात। चलतो अन्हुवात रहीं ,मन होखे ना भोर लउके नाहीं दिनों में, करे जिया हड़होर। हम ना जननी कि लागी,अइसन बड़का रोग जनितीं सूखी देहिया, कइले रहितीं जोग। मन केतनो पोल्हाईं , ई बिसरे ना  रोग  फुदुकत रहे  चंचल  मन, ना भावे  मनभोग। का  कहीं   प्रीति  के रीति, के  होखेला भाव खबर राखि  के बेखबर ,जइसे लगी अभाव। सूखि के ठठरी भइनीं,मन में खिलल गुलाब बोली सुनीं  सुमधुर जब,जिया बान्हें लबाब।  बिसरे   सुरतिया  नाहीं, गइल  हिया उतराय  चाहीं ना  कुछू  हमके, अब  तोहरो  सिवाय। उठत   डेग    निहारेला ,  मन   होखे   बेचैन  मन उचटे ,बया छछने ,लुटा गइल सुख-चैन। तबो  निरास  नइखीं हम,  लागल बाटे आस आजु ना त काल्हु मिलिहें,इहे बाटे विस्वास।                    ----------------------- राम बहादुर राय  भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

सच में वही अमीर है,जिंदा जिसका जमीर

सच में वही अमीर है, जिंदा जिसका जमीर ------------------------------------------------------ तृप्त करो तृष्णा मेरी , हर लो मेरी पीर पानी पानी हो गये , पानी मिला न तीर। उपर से दिखाते प्यार ,मन में रखते रार देते नहीं साथ कभी , नफरत के भंडार। सुखी तुमको रहना है ,बांटो जग में प्यार प्यारा यह संसार है , खूब करो तुम प्यार। मुख मलीन करते नहीं, मन से रहें कुलीन जो हृदय से है कुलीन , होते नहीं मलीन। भाव स्वभाव साफ हो, रखो नहीं मनभेद साफ मन से काम करो, चाहे हो मतभेद। नहीं गरीब है कोई , नहीं कोई अमीर सच में वही अमीर है जिसका जिन्दा जमीर। करते बात आदर्श की , हांकते लम्बी डींग हंसी उड़ाते सबकी ,खुद गदहे की सींग। राम बहादुर जानिए , सब हैं एक समान सम्मान नहीं कर सकते,मत करना अपमान। --------------------- राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश #highlight

तन्हाई में नइखे सुख, तबो इहे बा चाह

तन्हाई में नइखे सुख, तबो इहे बा चाह ----------------------------------------------------- ना जाने तन्हाई के , कहां लगावे दाव मन ओकर घबराई त , जोहे आपन गांव। गांव में जाके देखे , देखलस राम राज परल फेर में करीं का ,चली ना इहां राज। फिर तन्हाई चल देलस, जहां रहल आराम लागल झोंझ के लेंढ़ा, भइल सभे बेराम। धन दौलत अक्षइत रहे, तबो भइल कंगाल कोना - अंतरा में भी , सब लउके जंजाल। सबका सबसे अड़ंगा , रहल ना तालमेल बैरी भइल बोलचाल, अब भइल घालमेल। सब तन्हाई में रहता , बाटे एके साथ हंसत बा रोवला अस, छूटल सबके हाथ। तन्हाई में नइखे सुख ,तबो इहे बा चाह घुटि-घुटि के मुवत बाटे, तबो उहे बा राह। तन्हाई के तनिको भी, तन्हा नइखे पसंद सब कुछ सोझा देखता,तबो भइल मतिमंद। ------------------- राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश #highlight

जे जतने डूबल, बुड़त गइल

जे जतने डूबल , बूड़त गइल -------------------------------------- जे रिझत रहल उ रिझते गइल, जे सिझत रहे उ सिझते गइल। प्यार के जवन धइलस बिमारी कबो हंसे कबो रोवत रहल कबो अंखियन से बत्ती जरल कबो अंखिया लोरावत रहल। सांझ भइल कब दोपहर भइल सुध-बुध में बुझइबे ना कइल। चान तुरहीं के उ कहत रहन छोट चिरई धरइबे ना कइल। जिनगी अन्हार के पहलू रहल प्रेम पवलस अंजोर हो गइल। प्यार पाके अगरा गइल रहन जियल उनके मोहाल भइल प्यार में जेतना डूबत गइल मोह में ओतने दलकत गइल। जे जतने डूबल , डुबत गइल जोहला पर ना मिलबे कइल। धरि लिहलस जेकरा ई रोग नीक-जबून ना बुझइबे कइल। बेमारी जेकरा ई धइलस एह दुनिया से दूर हो गइल। ----------------- राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश #highlight

उजहल बगइचन के छांह

उजहल बगइचन के छांह ------------------------------- उजहल किरिनिया के धार परल बे नइया मझधार। अब चललो चलात नइखे रहियो बुझाते नइखे। नइखे बंचल कहीं अरार कहां गइल घरवा डंड़ार। सब केहू बइठल चुपचाप जइसे लागल कवनो पाप। सब कुछ लउके आर-पार सब देखावटी बा प्यार। हरियर-हरियर खेत रहे बीच नदी ना रेत रहे। प्लाट बनि के भइल तैयार लगल फ्लैटन के बाजार। सिकुड़ल जाता चारागाह उजहल बगइचन के छांह। बइठि के झंखता गंवुआ सोचि सोचि धरता कपार। अइसहीं सब उजहि जाई कहंवा लुकाई मयारि। बचाईं संस्कृति-संस्कार अपसंस्कृति करीं किनार।          -------------- राम बहादुर राय  भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश #highlight

नेह के थुन्हीं-टाटी उजहल रे भइया

नेह के थुन्हीं-टाटी उजहल रे भइया -------------------------------------------- टूटही मड़इया , चुवत ओरियनिया मनवा के धुंआठल, लउके चुहनिया। दाही के धुंआ , उड़ेला असमनिया नेह - छोह से भरल रहे दोकनिया। हर- परिहथवा के लमहर हरीसिया टाड़ि से बोवल जाव लतरि,मसुरिया। धान के कियारी, प्रीत के बेहनिया खेत में जिनगी ,रोपे बनिहरिनिया। काकी - काका सिखावसु रहनिया बइठसु अन्नपूर्णा माई खरिहनिया। खपड़ा-नरिया आ निगहता, धरनिया घुब काढ़ि के रहे, ओहमे दुलहिनिया। बरिस सौ के भइल दादी के उमिरिया गोधूली बेरा पियें हुक्का-चिलमिया। ठकचल अन्न-धन से रहल बखरिया दुखवा-दलिदर नाहीं लउके दुवरिया। टुनु-टुनु बाजे बबुअवा के चलइया थूथून रगरे कान्हीं बाछा घरगइया। जिनगी के मजा देत रहे धेनु गइया कल्हुवाड़ा के ढ़ूंढ़वा रहल मिठइया। चोंचा , मैना ,नेवुरा, सुगावा,चिरइया सुखवा से रहे भरल घर अंगनइया। बूढ़, लड़िका सभ लोग चढ़े भेंड़इया चकवा चकइया आ हम तूं भइया। ना कहे केहू बूढ़ा, न कहाव बुढ़िया कहे सब इनके दादी-काकी मइया। उड़ि गइल प्रेम के फुरगुदी चिरइया थेघ बा कहां,उजड़ ...