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Showing posts from June, 2025

अबो समय बा सोचऽ,कइसे बचि विरासत

अबो समय बा सोचऽ,कइसे बचि विरासत ---------------------------------------------------- छोट छोट खोंड़िला में,रहता बड़का लोग गाँव पसन परत नइखे,लागल सहरी रोग। घर-बार सब रोवत बा,सोचि पुरनकी बात बचल रहे विरासत ई,बचल रहे जयजात। बचल हऽ पसेवा से,करत बाड़ऽ राज नून रोटी खाके सब,खाके मोट अनाज। पांव फाटल बेवाई,चलसु लंगटे पांव लाल ललछहूं लउरिया,लेके घूमसु गाँव। पहिन के भगई धोती,आधा टांग उघार बचल रहे खेत बारी,होखे भले निघार। तबो बेचलन खेत ना,खूबे रहल अभाव काट लिहलें जिनगी सब,रहि के एके भाव। छोड़ के आपन धंधा,देसु मोछ पर ताव करे गुलामी सहर में,तबो उहे बा छाव। गाँव घर में रहत रहे,रहे उहां मलिकार गइल सहर नोकर बने,छूट गइल अधिकार। गाँव छूटल,घर छूटल,छूटल नेह सनेह छूट गइल माई बाप,छूटल सबसे नेह। आज के अदिमी बाड़न,बनत ढ़ेर हुंसियार खेत बारी बेचत बा,बनल रंगल सियार। खेत रहल माई-बाप,बेचल कहाव पाप बड़ बने के फेरा में,करत खूंटियाखाप। पिपर,पाकड़,महुआ के,गइल जमाना बीत दूब,मोथा,टांगुन के,नइखे लउकत रीत। का हऽ कवुआ,कोइल,नइखे एकर ज्ञान खेत बेचि गाड़ी चढ़े,बने खूब धनवान। जव-गहूं बुझाव नाहीं,माटी में का भेद बेचि विरासत बड़ ...

रिमझिम-रिमझिम बरिसे बदरिया

रिमझिम-रिमझिम बरिसे बदरिया! ----------------------------------------- रिमझिम-रिमझिम बरिसे बदरिया! पिउ-पिउ मनवा बोले भीतरिया। बादर गरजे,चमके बिजुरिया नेह से सगरो भींजे सरीरिया। रिमझिम-रिमझिम बरिसे बदरिया! कबो कारी कबो भुवरी बदरिया जल बरिसावे गंवुआ नगरिया। ताल-तलैया में उठेला लहरिया छप-छप करेले छिछिली नहरिया। रिमझिम-रिमझिम बरिसे बदरिया! पाकल आमवा चाहेला ढ़रकल झमड़ल जमुनिया आवे लरकल। जहां लागे लेव उहां हेंगा दियाता रोटी हथरोटिया घरवा सेंकाता। बरधा,मरदा करेला मनमानी सोकना काटेला मेंहिंये में चानी। खेतवा में लबालब भरल पानी धान के बेहनिया करेले फुटानी। रिमझिम-रिमझिम बरिसे बदरिया! डांड़ मेढ़ के सइहारे किसानवा कबो हंसे कबो गावेला गानवा। पानी बिना छछनत रहल परानवा पनिया परत भइल मनगर मनवा। रिमझिम-रिमझिम बरिसे बदरिया! कजरी गाई के छंवुकत गोरिया करे रोपनी खोटि लुग्गा कमरिया। उमड़ि-घुमड़ि के बरिसे बदरिया झपसल बरखा लहरे कियरिया। रिमझिम-रिमझिम बरिसे बदरिया! खुस भइल मनवा देखत किसनिया बड़ा नीक लागेला बरखा के पनिया। कबो झांके कबो बिहंसेली धनिया भीतरा घुंघुटा में फुटली किरिनिया। हरियर धान अस चहके दुल्हनिया...

काम बनावऽ आपन, चुप्पी रखिहऽ ढ़ाल

काम बनावऽ आपन ,चुप्पी रखिहऽ ढ़ाल। --------------------------------------------------- मन से करऽ काम तूं, खूब लगावऽ ध्यान लोग कही का एह पर ,दिहऽ मति तूं ध्यान। मन में कवनो बात बा, बाहर दऽ निकाल आग-पाछ मति करिहऽ,करिहऽ तूं तत्काल। बात बोलऽ सोचि के ,मति कसऽ तूं तंज तंज कसि के तूंहूं भी, रहबऽ अपने रंज। सोच सबकर अलगे बा ,बाटे अलग विचार सोच मिली एक जइसन,करऽ जनि लाचार। अगड़ बगड़ बोलला से, बनबऽ ना कबीर पसन परे ना रंग तब, डलिहऽ तूं अबीर। कृपा भइल भगवान के,भइल सुघर जीव रहल करऽ तूं अइसे, जइसे होला घीव। जुग जमाना बदल गइल,बदल गइल इंसान बड़ा कठिन हऽ जानल,नइखे कुछू निसान। मित्र बनावऽ सोचि के ,करऽ बहुत विचार काम आवे संकट में, राखे नीक विचार। सुनि लऽ राम बहादुर, बोलल बाटे काल काम बनावऽ आपन ,चुप्पी रखिहऽ ढ़ाल। -‐--‐------------------ राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश #highlight #जयभोजपुरी #भोजपुरी

भागि रहल बा लोग सब, छोड़ छाड़ के गाँव

भागि रहल बा लोग सब ,छोड़ छाड़ के गाँव! ----------------------------------------------------- भागि रहल बा लोग सब ,छोड़ छाड़ के गाँव खेत - बारी , घर-दुवार, जपत तोहरे नाँव। ठाढ़ हवेली गाँव के , निरखत आपन देह नेह प्रीत के जोड़ से ,माटी लिपटल गेह। दू कमरा में रहत बा , फलैट जेकर नाम घर में किरन फूटे ना, नोकर जेकर काम। रहल ठहाका खुसी के ,भरल हवेली लोग उड़त चले खुसबू जहां ,उहे रहल मनभोग। बहुत अभाग बा बबुआ, छोड़ गाँव के राज सहर में जाके तूंहूं ,बनि गइलऽ बजाज। छांह मिले ओरियानी, बरखा रहे कि धूप गुन के पूजा होत रहे ,जइसे फटके सूप। नून-रोटी-पियाज में , डालल रहल सनेह दूध - दही चांपत रहल , होखे ना मधुमेह। उड़े धूर अंगना में,उगत सुरुज के घाम घर-घर राधा कृष्ण सब ,घर-घर खेले राम। नेह चुवे ओरियानी , मातल रस से फेंड़ भींज गइल सब प्रीत में,डाकल पानी मेंड़। मिली दुलार देखे के, आवऽ कबो गाँव नेह-छोह से भरल बा , गाँवे जेकर नांव। बूढ़ बुजुरुग हवुवन जा,हमनी के वरदान बुद्धि के भंडार बाड़न ,दुख के इहे निदान। गाँव गढ़ हवुए बबुआ, गाँवे हवुए सान अब...

बेचि नथिया चुका दीं अब उधार सैंया जी!

बेचि नथिया चुका दीं अब उधार सैंया जी! ---‐------------------------------------------------ बेचि नथिया चुका दीं अब उधार सैंया जी! रहिया बार-बार, रोकेला हमार सैंया जी। । रहिया चलत हमके टोकेला बजजवा देखिले त धक-धक करेला करेजवा करत नइखीं काहें कवनो उपाय सैंया जी।। लागता कि हमरे खातिर कढ़लऽ करजवा सोचला पर बुझाला कि गिर जाई ई बरजवा कुछू कमइत त होइत हलुकाह सैंया जी। । रहिया चलत हमके रहि रहि निहारे  नजरी से हमरा के ताना बहुते मारे  बेचि नथिया चुका दीं, उधार सैंया जी। । नाहीं चाहीं गहना हमके नाहीं चाहीं लहंगा  दुनिया में बाड़ऽ तूं बलम सबसे महंगा नाहीं चाहीं टीका, नथिया,उधार सैंया जी।। जहां जहां जाईं पिछे पिछे हमरा आवे  तनिको डेरात नइखे आंखि ऊ देखावे। करीं मुवना के कुछऊ उपाय सैंया जी। ।                   ------------------ राम बहादुर राय  भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश #highlight  #जयभोजपुरी

आजु नाहीं सदियन से, भारत देस महान

आजु नाहीं सदियन से,भारत देस महान -----‐------------------------------------------- आजु नाहीं सदियन से,भारत देस महान देस दुनिया के हवुए,भारत हमार सान। जब नाहीं जानत रहे,का होला संस्कार रहे भारत ओहि घरी,पढ़त खूब ओंकार। सुर असुर संग्राम में, होखे लागल हार देव दनुज लड़लें खूब,भइल दनुज संहार। मथल गइल महासागर,मिल गइल कालकूट परल सोच में देव सब,पिही के कालकूट। शिव शंकर अभयदानी,कई दिहलें कल्यान पी गइलें हलाहल तब,भइलन सुर हैरान। मत-मतान्तर भी रहे,चाहे अलग विचार रहे दबाव ना कवनो,रहल ना व्याभिचार। शक अइलें हूंण अइलें,गइलें इहां समाय ॠषि मुनि के देस हवुए,पुण्य खूबे कमाय। बार बार हमला भइल,तबो ना भइल एक मुगल,मुस्लिम के विचार,रहे ना कबो नेक। नाक मूंछ के धौंस में,भारत भइल गुलाम नाक मूंछ दूनो गइल,दवुलत भइल निलाम। भइल गुलाम गोरन के,भारत भइल तबाह बढ़ल मन तब गोरन के,बा इतिहास गवाह। फूट डालब राज करब,रहे फिरंगी नीति जहां काम ना बने तब,गोरा करे अनीति। भइल तंग फिरंगी से,भारत के सब लोग जाति धर्म के बरजा से,बनल लड़े के जोग। देस के वीर बांकुड़ा,हो गइलन रणवीर देखत फिरंगिन अनेति,भइल सब सूरवीर। मिलिके लड़ल लोग सब,भइ...

आजु नाहीं सदियन से, भारत देस महान

आजु नाहीं सदियन से,भारत देस महान -----‐------------------------------------------- आजु नाहीं सदियन से,भारत देस महान देस दुनिया के हवुए,भारत हमार सान। जब नाहीं जानत रहे,का होला संस्कार रहे भारत ओहि घरी,पढ़त खूब ओंकार। सुर असुर संग्राम में, होखे लागल हार देव दनुज लड़लें खूब,भइल दनुज संहार। मथल गइल महासागर,मिल गइल कालकूट परल सोच में देव सब,पिही के कालकूट। शिव शंकर अभयदानी,कई दिहलें कल्यान पी गइलें हलाहल तब,भइलन सुर हैरान। मत-मतान्तर भी रहे,चाहे अलग विचार रहे दबाव ना कवनो,रहल ना व्याभिचार। शक अइलें हूंण अइलें,गइलें इहां समाय ॠषि मुनि के देस हवुए,पुण्य खूबे कमाय। बार बार हमला भइल,तबो ना भइल एक मुगल,मुस्लिम के विचार,रहे ना कबो नेक। नाक मूंछ के धौंस में,भारत भइल गुलाम नाक मूंछ दूनो गइल,दवुलत भइल निलाम। भइल गुलाम गोरन के,भारत भइल तबाह बढ़ल मन तब गोरन के,बा इतिहास गवाह। फूट डालब राज करब,रहे फिरंगी नीति जहां काम ना बने तब,गोरा करे अनीति। भइल तंग फिरंगी से,भारत के सब लोग जाति धर्म के बरजा से,बनल लड़े के जोग। देस के वीर बांकुड़ा,हो गइलन रणवीर देखत फिरंगिन अनेति,भइल सब सूरवीर। मिलिके लड़ल लोग सब,भइ...

मोंछ बनावे दूध से,नटखट रहे सुभाव।

मोंछ बनावे दूध से,नटखट रहे सुभाव। ---------------------------------------------- नून रोटी चेऊंआ,खाईंजा सुबहो साम ओरि छाजन भरल रहे ,रहे सब इंतजाम। मोट अनाज खाये सब,रहर-उरद के दाल माड़-भात पहेंटे सब,चोखा करत कमाल। लिट्टी रहे बाजरा के,रहे चभोरल घीव खाके दही भंइस के,जागे सबकर सीव। लड़िका सब चोंका पिये,जइसे गाय दुहाव मोंछ बनावे दूध से,नटखट रहे सुभाव। घीव भरल हलुआ रहे,संगे आम अचार रहल कटोरा फूल के,खाये बिना विचार। सील लोढ़ा काम करे,कुछू पिसे के काम पिसे पिसान घरहीं सब,जांता ओकर नाम। कूटे खाति अनाज के,रहे ओखर मूसर काम करे सब अपने से,साथ देबे दूसर। आम महुआ के बीने ,भोरे में सब जाव चुवल आम घरे आवे,पेट भर लोग खाव। लाटा रहे महुआ के, घर-घर में कुटाव बने अमावट आम के,सावन में सब खाव। सांवां-टांगुन धूस पर,रहे खूब बोआत मारे झपसी मेघ के,जब होखे बरसात। सोना अस टांगुन लगे,पाके ओकर बाल लाई खात अघाय सब,रहे रोग के काल। फांड़ भर दाना लेके,सांझी के सब खाव नून,तेल,मरिचा रहे,सिल पर खूब पिसाव। लाई गुरलाई बने ,देसी गुड़ के पाग भोर में दतुवन कइके ,खाते गावे राग। बोले अइसन बोल सब,सबके हिया जुड़ाव नेह-छोह आ...