कतनी नीमन गांव रहल रहल,नेह छोह के भाव रहल
कतना नीमन गांव रहल, नेह-छोह के भाव रहल --------------------------------------------------------------- पहिले कच्चा मकान रहल,आदमी मगर सांच रहल। सभ त संगहीं रहत रहल ,सभ सभके मानत रहल। जेकरा जवन जुरे आंटे , मिलजुल आपुस में बांटे। अंगना चहल-पहल रहल,सभे रीजल-पीजल रहल। धर्मशाला , इनार होखे ,सुखो-दुख के बात होखे। चाय ना चाह रहत रहल ,दूसरा के परवाह रहल। बड़का घर-दुवार होखे,दिल सबकर उदार होखे। आदमी त आदमी रहल ,जवन लउके उ उहे रहल। मोट पहिरे मोटे खाव, लेकिन नीक रहे सुभाव। दुवारे पर त हांच रहल ,दूध-दही के पांक रहल। आदमी त आदमी रहल ,नेह भरल बरसात रहल। चाहे कच्चा मकान रहल ,सब नेह के जमात रहल। कतनो उछाह होखे या ,कि कतनो उजास होखे जबान के कीमत रहे , जबान के निठाह होखे। कतना नीमन गांव रहल, नेह-छोह के भाव रहल मारो-झगड़ा होत रहल ,लेकिन संगहीं खात रहल। देंहि ,पइसा ,धन-दवुलत , केहू देखवत ना रहल केहू गोड़ ना खिंचत रहल,गिरल के उठावत रहल। मकान भले कच्चा रहल ,मगर आदमी सच्चा रहल लोगन क प्रेम सांच रहल ,चोरिका ना डिठार रहल। हीत-मीत,दुश्मन जव...