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Showing posts from August, 2024

गंवुवा के जिनगी बचाव मोरे भइया

गंवुवा क जिनगी बचाव मोरे भइया।। ------------------------------------------------ चलत बा जिनगिया उधार मोरे भइया बहुत याद आवेला पहिलका समइया। खेत-खरिहानी सब संगवे जात रहल बोवे के बेरि आर-कोन कोड़ात रहल। दुवरा पर कुदे बछवा देखते मइया मेंक-मेंक करे, धवुरे मारत कलइया। अन्न-धन से भरले रहे घरवा-दुवरवा टन-मन रहते रहले भइया किसनवा। होत भोरहरिया गीत सुनावे चिरइया गीता-मानस होखे दुवार अगनइया। लाल-ललछहूं लाठी कन्हिया पर धरे कामदेव भी इरखा में देखि के जरे। हरियर कचनार रहल खेतवा सरेहिया रेंड़त बालिया झांके जइसे दुल्हिनिया। लह-लह लहरे देखत खेतन में खुसिया बिहंसे किसान देखे सोना क बालिया। पिपर के गांछि केहें मिले ए.सी.क हवा छलके गतरे-गतर नेह छोह के दवा। दूध-मलाई चांपत रहे कुकुर बिलइया अब गइये-भंइ सपना भइल ए भइया। त कड़े-कड़े कवुआ नबाव क बेटवुवा लुटि लिहलस सहरिये हमनी के गंवुवा। नाहीं रहल गंवुवा ना त बनल सहरिया छूटत नइखे हमसे गांव के मयरिया। चलत बा जिनगिया उधार मोरे भइया गंवुवा क जिनगी बचाव मोरे भइया। ------------------- राम बहाद...

बोलिहऽ भोजपुरी, तूं त हवुवऽ भोजपुरिया

बोलिहऽ भोजपुरी, तूं त हवुवऽ भोजपुरिया ---------------------------------------------------- बहुत पढ़ाई पढ़िके,बोले भाषा भोजपुरिया साचों कहतानी,नीक लागे तोहरी बोलिया। गोड़ लागसु सबके नाहीं करेलन भेदभवुवा उंचकी जाला एंड़िया, फरकि जाला रोंवुवा। पूछाला कइसे बाड़ऽ,धरसु भरि अंकवरिया नेह-छोह पाइके,रतियो बुझाला भोरहरिया। माई-बाबू से मिलला पर,भर जाला झोरिया उधिया जाला दुखवा,बरिसे माई के नेहिया। गंवुआ के जिनिगिया,सबसे नीमने बुझाला सहर-सहरात में रहला से,मनवा उबियाला। नेह-छोह के अगनइया में भरल बा सनेहिया सभे मेल-जोल से खातो रहे एके जगहिया। जब केहू कहे,कि आइल बाड़े का रे बबुआ बूझनी कि भदवारिये में आई गइल फगुआ। बाग बगइचा कहे,हमरा से मनवा के बतिया गंवुए रहऽ , कहीं जनि जइहऽ ए संहतिया। केतनो आगे बढ़ जइहऽ,हवुवऽ भोजपुरिया कहीं रहऽ,खेवत रहिहऽभोजपुरी क नइया। खेलत रहऽ चकवा चकई आ हम तूं भइया याद करऽ ए बबुआ,तूंहूं आपन लरिकइया। जब आइल देखलस,तोहके गंवुवा-गिरवुंवा लाग गइल आसरा,अब तोहरे से रे बेटवुवा। अफसर बनिहऽ, चाहे राजा बाबू हो जइहऽ बोलिहऽ भोजपुरी,तूं त हवुवऽ भोजपुरिया। ---------- @सर्वाधिका...

आइल भदवारी के महिनवा हो

आइल भदवारी के महिनवा हो ------------------------------------- आइल भदवारी के महिनवा हो एकरा में सुगवो उपास करेला। रुखर होखे घाम बरिसे पनिया घरवे में बाड़ी अंउसात कनिया। खाये के करेला खूब मनवा हो चमके बिजुरिया त डर लागेला। अंगना गली खूब हंचाड़ भइल दुवारे कीच काच लेवाढ़ भइल। कइसे जाईं खेत खरिहनवा हो दिनवा रतिया पनिये बरिसेला। मारेला झपटी त मड़हे मड़इया चुवे खपरैल ओनहेले धरनिया। छपले बा चहुओर अन्हरिया हो घूमे जाये खातिर मन तरसेला। पहिले सब इंतजाम रहे कइल धइलो लवना खतमे होई गइल। कइसे जरी चुल्ही में अगिया हो गोइंठवो नाहीं अगिया धरेला। सब जिया जंतु घरे में लुकाइल सियरो के माथा बा चकराइल। इहे हवुए भादो महिनवा हो एमे अकिलो ना काम करेला। -------------- राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश #everyonehighlights

तुम पूछ रहे हो कि तुम कैसे हो

तुम पूछ रहे हो कि तुम हो कैसे --------------------------------------- मेरे जख्मों पर नमक छिड़ककर तुम पूछ रहे हो कि तुम हो कैसे ! जब भी तुझको मायूस देखा मैं हर लिया मायूसी,आंधी बनकर। मुझे जलते देखा ,और जलाकर तुम पूछ रहे , तुम खुश हो कैसे ! मेरा तो कोई दुश्मन ही नहीं था दुश्मनी ओढ़ा,मैं तुझे समझकर। बेजान दिल से पूछते उचककर दिल का मरीज बन गये हो कैसे। मेरे ही दुश्मनों से प्यार जताकर तुम पूछ रहे हो,कि तुम हो कैसे! तुमको अपना होने के भ्रम में था तेरी हर धड़कन को सुन रहा था। मेरी धड़कन लूटा अपना बनकर पूछ रहे बिन धड़कन जिंदा कैसे! मेरे जख्मों पर नमक छिड़ककर तुम पूछ रहे हो,कि तुम हो कैसे। ---------------- राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश @highlight

वृहन्नला उठा ली गांडीव

वृहन्नला उठा ली गांडीव!! ------------------------------ बैठ कुंडली मार शान्त मन तप्त को अभिशप्त करता! नहीं कुलीन लगता मलिन देखता कातर दृष्टि कुलीन! कुदृष्टि,कुपित रखे जलन राह कुराह से करे भ्रमित! धवल धूसरित श्वेत बसन प्राक्तन स्याह अंत:करण! स्वयंप्रभा कहां देखे नयन ऐसे भरे पड़े यहां विशिष्ट! मृग धरा रूप कृत्रिम तन करता प्रयास हरण वह्रि! गभस्ति कहां रोका गगन कहां रोके उदधि प्रवर्षण! कब तक रोकोगे सरासन वृहन्नला उठा ली गांडीव!! देखो वो उठा ली गांडीव करेगी तेरा ही दर्प हरण!! -------------- रचना स्वरचित और मौलिक राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश @highlight

मुझसे,मुझे छीनना याद रहेगा

मुझसे, मुझे छीनना याद रहेगा --------------------------------------- मेरा सफर जारी है , जारी रहेगा जो किया है तूने ,वो याद रहेगा। मैं तो सदियों से हूं कायल तेरा तेरा वह ख्याल हमें याद रहेगा। चाहे मुझे याद करो या ना करो तेरा दमकता चेहरा ,याद रहेगा। मैं जिंदा हूं तेरे मकसद के लिए मेरे रुह पर भी तेरा नाम रहेगा। तुमको देखूं तो भी परेशानियां नहीं देखूं तो होती हैं बेचैनियां। ये तेरा मिलना , कोई मसला नहीं मुझसे ,मुझे छीनना याद रहेगा। चाहे युग बीते या सदियां बीते इस दिल पर तेरा ही नाम रहेगा। मैं जिंदा रहूं ना रहूं, तुमको क्या तेरा इश्क जेहन में, जिंदा रहेगा। तूं तो एक समन्दर हो ,जानता हूं दरिया भी तुम्ही हो,ये याद रहेगा। मरके भी मैं जिंदा हूं,जिंदा रहूंगा पलटके देखना तेरे साथ मिलूंगा। मेरा सफर जारी है, जारी रहेगा जो किया है तूने ,वो याद रहेगा। ----------------- राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

मोर हिंद क ललनवा हो, ध्यान तूं रखिहऽ

मोर हिंद क ललनवा हो ,ध्यान तूं रखिहऽ -------------------------------------------------- मोर हिंद क ललनवा हो, ध्यान तूं रखिहऽ खतरा में वतनवा के ,ध्यान तूं रखिहऽ सीमवा प लड़तारऽ , घरवे मुदइ हजार दुसुमन ना चिन्हाई हो,घरवे मुदइ हजार। पइसे प सब बेचाता,बेचता सब निसान कइसे चलि देसवा हो,बिगड़ताटे विधान। सभ बने चलंसार हो, सभ बाटे हुंसियार केहू सहीद होतबा, केहू मुदइ क यार। बहुत भइले कुर्बान हो,हवें सपूत महान रातो दिन जागतारे, हवें हिंद के जवान। हिमालय पहरुआ हवें, सागर धोवे पांव जेतना बाड़ें दुसुमन ,बेसी हमार गांव। रक्षा करसु जवनवा हो, माई के रतनवा उनुकर इज्जत करऽ,रखिहऽ धियानवा। नया भारत हवुए हो, सस्त्रे के हऽ खान भूल से छेड़ दिहलऽ, मेट जाई निसान। मोर हिंद क ललनवा हो,ध्यान तूं रखिहऽ खतरा में वतनवा के , ध्यान तूं रखिहऽ ------------------- रचना स्वरचित अउरी मौलिक @सर्वाधिकार सुरक्षित।। राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश

कटघरे में टंगी जिंदगियां

कटघरे में टंगी हैं जिंदगियां! ---------------------------------- रौंदती इंसानी उसूलों पर दौड़ रही हैं सिरकटी लाशें! देखते जाओ खैरखाहों को देखो कैसे फेंक रहे पाशे! जीते हैं फरेबी तुमुलों पर बजाते हैं देहरी पर ताशे! ये आदमकद आदमखोर हैं खाते हैं भरोसे की सासें! बना  देंते  हैं , जिंदे  को मुर्दा  पीते हैं लाज ,शर्म  एवं हया! कौंध रही  रूहों की रूह पर  छीन लेते हैं कफन की सासें! कटघरे में  टंगी हैं जिंदगियां खोज रही अपने वजूदों को!  रौंदती  इंसानी  उसूलों  पर दौड़ रही हैं  सिरकटी लाशें!              -------------- राम बहादुर राय  भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश @highlight