Posts

Showing posts from September, 2024

तेरे कारण ही हम बेपनाह हो गये

तेरे कारण ही हम बेपनाह हो गये ---------------------------------------- पल भर में ही इरादा बदल लेते हो तुझे अपना बनाने से क्या फायदा। जब भी मिलते,फुर्सत नहीं मिलती ऐसे मिलने का तुझसे क्या फायदा। सिर से पांव तक हम फ़ना हो गये तेरे कारण ही हम बेपनाह हो गये। गुजारिश है ख्वाहिश मेरी पूछ लो वर्ना ख्वाहिशों का है क्या फायदा। जब तुम साथ थे वक्त भी साथ था तुम बिन ये वक्त भी ठहर सा गया। दिन भर सूरज मेरा निकलता नहीं रात में तारे गिनने से क्या फायदा। तुम थे तो अंधेरों में भी थी रोशनी तूं नहीं तो दीपक भी ओझल हुए। मेरी क्या थी खता, बदल तुम गये मैं न बदला,इससे है क्या फायदा। मेरी जिंदगी है, पानी का बुलबुला कब उठी ,कब फूटी पता ही नहीं। मैं जिंदा हूं तो ,तेरी अज़मत लिए वर्ना ,ऐसे जीवन से क्या फायदा। इस तरह से मुझमें अंकशायी हुए मेरे दिल में कोई जगह ही नहीं है। तेरे इरादे बदलने से कुछ गम नहीं तेरे बिन किसी से फायदा ही नहीं। ------------------ राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश @highlight

निज गौरव अभिमान हिन्दी,देश का श्रृंगार है हिन्दी

निज गौरव अभिमान हिन्दी,देश का श्रृंगार है हिन्दी -------------------------------------------------------------- देश की खांटी माटी हिन्दी ,भारत मां की बिंदी हिन्दी हमारे लिए अभिमान हिन्दी,युद्ध हेतु प्रयाण है हिन्दी ! सबको को आती है हिन्दी,हमारे देश की थाती हिन्दी यहां तो कण-कण में है हिन्दी,सबकी जुबान पे हिन्दी! हमारी राजभाषा है हिन्दी,राष्ट्र गान व गीत भी हिन्दी क्यूं नहीं राष्ट्रभाषा है हिन्दी, चारों तरफ हिन्दी-हिन्दी! न्यायालय की भाषा अंग्रेजी,वैकल्पिक क्यों है हिन्दी क्या हिन्दी सम्मान नहीं,राष्ट्र भाषा क्यों नहीं है हिन्दी! निज गौरव अभिमान हिन्दी , देश का श्रृंगार है हिन्दी एक अमिट आवाज हिन्दी,आओ शान से बोलें हिन्दी! जवानों की प्राण हिन्दी, हम सबकी आवाज़ है हिन्दी भाषाओं की ताज़ है हिन्दी,संस्कृति व संस्कार हिन्दी! एकता की पहचान है हिन्दी,ईश्वर का वरदान है हिन्दी हिन्दुस्तानी की शान हिन्दी,मर्यादा की पर्याय है हिन्दी! ----------------------- राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

खाके कसमें भी लोग बदल रहे हैं

खाके कसमें भी लोग बदल रहे हैं ----------------------------------------- रिवायतें वही हैं, लोग बदल रहे हैं खाके कसमें भी लोग बदल रहे हैं। दिखावे के साथी तो बहुतेरे मिलेंगे आयेगा बुरा वक्त,साथ नहीं मिलेंगे। सोशल साइट्स पे खूब हांक रहे हैं मिल गये कहीं ,बगलें झांक रहे हैं। अगर आपने कर ली कुछ तरक्की सब चुप हो जाते हैं,बात है पक्की। कहते कि सब बन्दरबांट कर रहे हैं सच है सब मिल बांट के खा रहे हैं। सच्चा, झूठा साबित किया जायेगा कायर को ही बहादुर कहा जायेगा। इमान-धर्म वाले को तंग कर रहे हैं झूठे व फरेबी को पसंद कर रहे हैं। रिवायतें वही हैं , लोग बदल रहे हैं खाके कसमें भी लोग बदल रहे हैं ---------------- राम बहादुर राय भरौली, बलिया, उत्तर प्रदेश #highlights

सब केहू अपने में अंझुराइल बा

अपने में सब केहू अंझुराइल बा -------------------------------------- कईसन समय अब ई आइल बा अपने में सभ अंझुराइल बा। हित हो गइले, हितवे के दुसुमन दुसुमन से मिले के धधाइल बा। घरवे में होखे खूबे चोरिका घरे में लागल , घरवे फोरिका। खूबे अन्न-धन से फंफाइल बा तबो त लूटहीं में खखाइल बा। अपना घरवा के हाल ना पूछे दूसरा के घरे जासु ना छूछे। साढ़ू - साली से घेराइल बा साली के देखिके उतराइल बा। आपन माई-बाप पहिरे फटहा पूछऽ त लागे चला दी झटहा। देखला पर लागत घबराइल बा जईसे सुख गिरवी धराइल बा। कुछवू पूछऽ कुछ ना बोलेलन लेबहीं खाति मुंहवो खोलेलन। गजबे दलिद्रपाना समाइल बा लूटहीं खातिर अंउजाइल बा। कईसन समय अब आइल बा अपने में सब.................... ---------------- राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश #highlightseveryone

जीतकर भी हार जाते हैं

जीतकर भी हार जाते हैं ----------------------------- जिंदगी के फलसफे पर क्या-क्या हो जाता है। जब दिन खोजते हैं तब दिन पीछे छूट जाता है। जब रातें कट जाती हैं उजाले की बलिवेदी पर। सारा चैन खो जाता है तो चैन खोजा जाता है। मुझे कोई जानता नहीं मेरी ऐसी इच्छा भी नहीं। ये सुबह भी नहीं होती वो शाम में कट जाती है। जिंदगी की भाग-दौड़ में जिंदगी ही छूट जाती है। हम रिश्ते निभा रहे थे वह स्तेमाल कर रहे थे। हम दूध के धुले नहीं हैं पर झूठ फरेब से परे हैं। कभी हंसना चाहता हूं तब हंसी छूट जाती है। हम सुकून की चाहत में अपना सुकून खो देता हूं। मैं अपने को खोजकर अपने ही थक जाता हूं। खुश होके खुश रहता हूं गम स्वयं भाग जाता है। कुछ मोड़ ऐसे भी होते हैं जहां सब छूट जाता है। जीतने को जीत जाते हैं जीतकर भी हार जाते हैं। हमसे कोई रुठ जाता है अपना पीछे छूट जाता है। जिंदगी के फलसफे पर क्या-क्या हो जाता है।  ----------- राम बहादुर राय  भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

सभ कीनी लेबऽ,माई ना किनाई

सभ कीनी लेबऽ,माई ना किनाई --------------------------------------- माई त माई हई,केहू दाज ना पाई माई का होखेली,माईये बता पाई। जेकर माई ना रही,ओकरे बुझाई सभ कीनी लेबऽ,माई ना किनाई। होटल,रेस्टोरेंट में त खाइये लेबऽ माई के बनावल रोटी ना भेंटाई। सभे बा स्वार्थी,नइखे केहू आपन एगो माईये बाड़ी,करेली उधापन। जस-अपजस से ,ई दुनिया डेराई जस-अपजस,माई देबेली भगाई। कुछ नाहीं चाहीं,चाहीं हमके माई कालवो देखते माई के भाग जाई। माई जइसन,अमृत कहंवा भेंटाई माई बिना जिनिगी नाहीं समेटाई। माई के अंचरा में भरल बा मिठाई अनमख ना माने,करीं जब ढ़िठाई माईये डांटेली आ माईये दुलारेली माई बिना माथ हमार के सुहुराई। माई के करनी केहूवे से ना भराई पाप परी रोंवा भी माई के भहराई। माई त माई हई, केहू दाज ना पाई माई का होखेली,माईये बता पाई। ------------------ राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश @highlight

सहरिया से नीमन आपन गंवुए बा

सहरिया से नीमन आपन गंवुए बा ------------------------------------------ सहरिया से नीमन आपन गंवुए बा गंवुआ सोगहल पिपर के छंवुवे बा। कई दिन के खाना फ़्रीज़ में रखाला ओकरे के सभ केहू चाव से खाला। गंवुआ के हवा-पानी स्वर्गे हवुए गंवुआ के लोग एकदम निर्मल बा। बोलियो में मिस्री के मिठास रहेला गंवुए नेह-छोह भरल पिरितियो बा। दुख दलिदर चाहे केतनो आ जाई सब केहू मिलि के देबेला भगाई। गंवुआ-जवार खुला किताबिये बा प्यार-दुलार से भरले सरेहिया बा। इमान-धरम से ही सब केहू रहेला छल-कपट केहूवे मन में ना धरेला। केहू के घरे जाइके ,आजमा लऽ जेवन रही मिली, मांग के देख लऽ झूठ-फरेब गंवुवन में नाहिंये बा संस्कार,संस्कृति इहंवे बंचलो बा। जहंवा देखबऽ सब खुसे लउकी निठोठ बोली हऽ, ना केहू फउकी। बूढ़ पुरनिया के आसरा गंवुए बा सेवा होखे जइसे ,देवी-देवता बा। वृद्धाश्रम के कोढ़ गंवुआ ना मिली केहू इहां कुहुंकत कूढ़तो ना मिली। एहिसे कहतानी गंवुए अब चलिंजा सहरिया से नीमन आपन गंवुए बा। ------------ राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश @highlight

मेरी तो संस्कृति हो तुम

मेरी तो संस्कृति हो तुम!! ------------------------------ मेरे अन्तस में बसे हो तुम, ध्यान से अन्तर्ध्यान, जहां भी देखो तुम ही तुम! तुम्हें लगता है तुम ही हो, तो देख अपना अक्स, मेरे तो अक्स भी हो तुम! ख्वाब ख्याल में बसे तुम, संधान या परिधान, मेरी लिए संस्कृति हो तुम! मेरे कंठ उर के सृजन तुम, मोह कहो या विछोह, प्रेम के अमृत स्रोत हो तुम! शुष्क सजल नयन में तुम, झील कहो या सागर, मेरे नयनाभिराम हो तुम! अनचाहे मेरे चाह हो तुम, इकरार और इंतजार, मेरे जीवन के संसार तुम! रेगिस्तान में ओसिस तुम, मूल कहो या क्षेपक, मेरी दुनिया जहान हो तुम! अतुलित आधार भी तुम, मूक रहूं या वाचाल, मेरे जीवन की पतवार तुम! तिमिर तम के उजास तुम, निर्गुण कहो या सगुण, जीवन के एहसास हो तुम! -------------- राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश #followers

जहंवा सूरज कु किरन,बजावे भिनूसार

जहंवा सूरज के किरन, बजावे भिनूसार ------------------------------------------------ जहां ठोकर, पोखर बा, उहवें बाटे छांव लागेला बड़ ठहाका , उहे कहाला गांव। जहंवा सूरज के किरन, बजावे भिनूसार जहां उमिर कहे तजुर्बा,मिले खूबे सम्मान। कोइली के मधुर तान ,काग उचरे मुड़ेर कुकुरो करे रखवारी, नेह-छोह क बड़ेर। मूस कुटुके नेह-छोह ,तबो कहासु गनेस मनइ के बात छोड़ऽ , पंछी कहे सनेस। मड़ई-टाटी बनल बा , इंच इंच के प्रेम माई-माटी के महक, लिपटे खूब सप्रेम। सीकम भर मिले गोरस,दही के लगे ढ़ेर बाटी-चोखा खाई के, होखे सभे कड़ेर। घर आगन केहू आवे ,रतियो लागे भोर मिश्री अस बोली सुनिके ,फूटेला अंजोर। गौरैया क चांव-चांव, प्रीत से लदल गांव रिस्ता-नाता इहें जन्मल,गांवे में बा छांव। अभाव होखे केतनो,संतोष भरल भाव निठोठ बोलेला बोल , इहे गांव के छाव। ---------------------- राम बहादुर राय भरौली ,बलिया ,उत्तर प्रदेश @highlight

मैं पथिक हूं,चलता रहूंगा

मैं पथिक हूं,चलता रहूंगा ------------------------------- मैं तो पथिक हूं, चल रहा हूं , चलता रहूंगा। मुझे चलना होगा, मैं झुककर, चलता रहूंगा। रुकना ही नहीं है, मैं दरिया सा ,बहता रहूंगा। मैं एक पथिक हूं, जंगल सा, हरा ही रहूंगा। निराश नहीं हूं, मैं पेंड़ों जैसा, खड़ा रहूंगा। सूरज नहीं हूं, शामो-सुबह, होता रहूंगा। मैं जानता हूं, आगे भी, अकेला रहूंगा। राहों में कंटक हैं, तो हटाकर, चलता रहूंगा। राह का अन्वेषी, नई राहें, तलाशता रहूंगा। दिल में गुबार है, अव्यक्त, मैं चलता रहूंगा। राहें रोक रहे हो, नई-नई राहें बनाता रहूंगा। रुकना नहीं है मुझे, देख लेना मैं चलता रहूंगा। जो तेरा भ्रम है, उसे मैं तोड़ता ही चलूंगा। मैं पथिक हूं, शून्य से शून्य होता रहूंगा। मैं ऐसा शून्य हूं, एक को दस करता रहूंगा। कोई कुछ भी है, दम्भ,शून्य करता चलूंगा। मैं पथिक मेरा क्या, देखते रहना,चलता रहूंगा। तुम्हारी चुभन से ही, मैं उर्जस्वित होता रहूंगा। --------------- राम बहादुर राय भरौली, बलिया,उत्तर प्रदेश #highlights #followers