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Showing posts from May, 2024

बड़े मिजाज से अब रहा करता हूं

बड़े मिजाज से अब रहा करता हूं!! ----------------------------------------- तुम्हें देखकर मैं देखा करता हूं सज संवर के मैं चला करता हूं। जब तुम्हीं नहीं थे वीरानियां थीं जीने में सारी परेशानियां थीं। बार-बार उन्हें मैं देखा करता हूं बड़े मिजाज से अब रहा करता हूं। पहले तो मन लगता ही नहीं था वक्त ऐसा था बीतता ही नहीं था। एक-एक दिन भी भारी होता था वक्त काटने  में जमाने लगते था। तुम आ  गये  तो  मैं जीने  लगा हूं तेरी  याद  में,  मैं   रहा  करता हूं। वक्त  अपने  रफ्तार से भी तेज है वक्त  की  रफ्तार  धीरे चाहता हूं। हर पल  तुझे मैं  जीना  चाहता हूं सदियों से ही तुझे चाहा करता हूं। तेरे  मिलने  से  जिंदा  हो गया हूं  तेरे दिल  में ही  मैं  रहा करता हूं।              ---------------- राम बहादुर राय  भरौली, बलिया, उत्तर प्रदेश

दिल देइके उधार जी रहल बानी

दिल देइके उधार जी रहल बानी -------------------------------------------- जिनगी के कहानी लिख रहल बानी प्यार हम जबानी लिख रहल बानी। अब का कहीं कतना भरम में रहनीं भरम के निसानी लिख रहल बानी। उनकरा खातिर हम त जियतो रहनीं अब मरे के कहानी लिख रहल बानी। हम ना जानत रहनी अइसन प्यार के बिना गवाही सजा पा रहल बानी। दुसुमन के मार बहुत सहले बानी प्यार के मारल त डहक रहल बानी। उनके देखनी कवनो सिकन नइखे उनकर हंसल देख जी रहल बानी। देखे में हमहूं निमने लागतनी उपर हंसत दिल से रो रहल बानी। अब कइसे बताईं केकरा से कहीं दिल देइके उधार जी रहल बानी। हमार जिनगी के एके मकसद बा तोहरा खुसी में हमहूं खुस बानी। अब हमार जिनगी तोहार हो गइल अब पार्थिव सरीरे ढ़ो रहल बानी। ------------------ राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

डग डग घूमेला बेरोजगार हो

डग - डग घूमेला बेरोजगार हो! --------------------------------------- नया रंग में सभे बाटे रंगाइल सभे केहू अपने बा में भुलाइल। डग - डग घूमेला बेरोजगार हो नोकरी के फारमो नाहीं आइल। एगो दूगो फारम रहे भराइल परचा ओहू के लीक होई गइल। झरे पाके लागल हमरो बार हो लागताटे बुढ़ापा हमरो आइल। बाबू-माई करजा में गोताइल एकहू तीलकहरू नाहीं आइल। हीत-मीत टोला परोसा हंसता पढ़हीं में खेतो इनकर बेचाइल। पढ़-लिख के का तूंहूंवूं करबऽ पद चाहे पइसा नाहीं भेंटाइल। हाय पइसे के नसा बा धराइल के आपन के दूसर ना बुझाइल रोजी रोजगार के टोटा बाटे मन मोरा बाटे खूबे अकुताइल। केसे कहीं कुछ सूझते नइखे हो बिना नोकरी कामवे गड़बड़ाइल। उपरा से मंहगाई भइल डाइन बेरोजगारी से सब तड़फड़ाइल। ----------------- राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

आज का यह कैसा शहर है

आज का यह कैसा शहर है ! -------------------------------- आज का यह कैसा शहर है चारों तरफ जहर ही जहर है! नहीं कोई रिश्तों की कदर है न कोई रहने की ठहर है! गांव में सबका अपना घर है वहीं रिश्तो की भी कदर है! गांव से ही बनते शहर हैं फिर भी कहते अच्छा शहर है! जहां रिश्तों में केवल जहर है हम उसी को कहते शहर हैं! रिश्ता मतलब बीवी-शौहर हैं और सब रिश्ते तो बे असर हैं! मां- बाप की इतनी कदर है अकेला ही करता बसर है! ठोकर खाकर पीता जहर है आधुनिकता का यही कहर है! कहते शहर में मेरा घर है कोई घर आ न जाये , डर है! अतिथि देवो भव तो कहते हैं अतिथि आ जाये वो ,जहर है! ------------------ राम बहादुर राय भरौली, बलिया,उत्तर प्रदेश

जब-जब आवेला देस में चुनवुवा

जब-जब आवेला देसवा में चुनवुवा ------------------------------------------- जब-जब आवेला देसवा में चुनवुवा तब-तब लउकेलन नेता लोग गंवुवा। पांचों बरीस उ चिन्हले नाहीं पूछले कबो दिल्ली त कबो बिदेसे घूमले। केहू चलिए गइल त पूछेलन नवुवा मन कइसे परी अइले नाहीं गंवुवा। गली-गली के खाको खूबे छानतरे राह चलन्तनो के गोड़वो लागतारे। दवुरतरन खूब जइसे घुमरी परवुवा गांवे घूमसू जबसे आइल चुनवुवा। अइसन दुलार देखावत बाड़ें सबसे जइसे सब कोई घरवे के बेटवुवा। बेटा-बेटी सबके जूझवले बाड़न कुछू कइके जिते के बाटे चुनवुवा। एक महिने के त इनकर खेती बाटे पांच बरिस तक चानी काटे के बाटे। होता चकवा चकईया हम तूं भइया डेरा डलले गंवुवा आइल चुनवुवा। उजर-उजर भइल बाटे सगरे गंवुवा नेता लोगे लउकले आइल चुनवुवा। जब-जब आवेला देसवा में चुनवुवा तब-तब नेता लोग लउकेलन गंवुवा। ------------------- राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

मेरे जख्मों से भी आशीष पाते रहे

मेरे जख्मों से भी आशीष पाते रहे ----------------------------------------------- जिन्हें हम अपने पलकों पर बिठाते रहे जिन्हें देखकर हम खूब भाव खाते रहे। जिन पर हम अपना सब कुछ लुटाते रहे जिन्हें देखकर हम खूब ताव खाते रहे। वक्त के साये में इस कदर उलझाया मुझे सब लुट लिया,जिसे अपना समझते रहे। आहिस्ता-आहिस्ता मुझे वह रेतते रहे हम समझे जख्मों पर मरहम लगाते रहे। इतना बेरहम वह कैसे हो सकता है मेरे जख्मों से भी आशीष पाते रहे। होश में जिनको हम अपना समझते रहे मरने की खुशी में पछता भी नहीं सके। अब इस जमाने में किस पर भरोसा करें अपने मुझे बहुत प्यार से रेतते रहे। उठ गया भरोसा ,तब अकेला रहने लगे दुश्मन से ज्यादे दोस्त जख्म देते मिले। -------------------- राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

हर घुटन के सुख बनावल जाई

हर घुटन के सुख बनावल जाई ----------------------------------------- अब घुट घुट के काहें जियल जाई प्यार दुलार से सबसे मिलल जाई। चारे दिन के जिनगी मिलल बाटे खूबे नीमन से मजा लिहल जाई। सबकर जिनगी नीमने से गुजरो अइसने काम कुछू कइल जाई। केहू के करेजा फाटल होई मिलजुल के करेजा सियल जाई। जिनगी भगवाने के दिहल हवुए जइसे रखिहन वइसे रहल जाई। खा पियऽ खूब आनन्द में रहऽ जिनगी रही तबे त मिललो जाई। तृस्ना रखले से का फायदा बाटे रही जिनगी तबे कमाइल जाई। कहल जाला हंसले घर बसेला आईं खूब खुलि के हंसल जाई। घुट-घुटी के नाहीं जियलो जाई हर घुटन के सुख बनावले जाई। सुख-दुख हमनी के मने में बाटे अपना मनवे के मनावल जाई। ----------------- राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेशहर

ऐ जमाना तेरी बेरुखी पर

ऐ ज़माना !! तेरी की बेरुखी पर मैं भी तर जाऊंगा ज़र्रे ज़र्रे पर तेरा नाम लिखा हो बस फ़ना होकर भी खुशी खुशी मैं तो खुदकुशी कर जाऊंगा ------- राम बहादुर राय बलिया उत्तरप्रदेश

रंग बदल सकते हैं तासीर नहीं

रंग बदल सकते हैं, तासीर नहीं -------------------------------------- शक्ल से बड़े खूबसूरत दिखते हैं अक्ल से तो पानी भरते देखे हैं। अहं और वहं दोनों ही गलत है मगर इसे ही बढ़ते हुए देखे हैं। पुरखों की थाती बचाने के लिए त्याग करते भी बहुतों को देखे हैं। जैसे कुम्हार को मिट्टी के साथ प्यार से उसे पात्र बनाते देखे हैं। सारी नदियां समंदर में मिलती हैं समंदर बेचने वाले भी देखे हैं। वज़न के हिसाब से रहना चाहिए वजन से उपर बोझ बनते देखे हैं। रंग बदल सकते हैं, तासीर नहीं कोयल जैसे कौवे भी देखे हैं। ------------------- राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश

केकरा से कहीं केहू बूझत नइखे

केकरा से कहीं केहू बूझत नइखे!! ---------------------------------------- केतनो मनाईं ,मनवा मानत नइखे केकरा से कहीं ,केहू बूझत नइखे! आजू ना त काल्हू ,जाहीं के बाटे केकरा से कहीं ,केहू बूझत नइखे! सोगहग सरीरिया माटिये के बाटे एकदिन माटिये में मिलहीं के बाटे! धन-दवुलत कुछवू संगे नाहीं जाई महल अंटारी एहिजुगवे रहि जाई! केतना अनाड़ी बाटे ,बूझत नइखे जाहीं के बाटे ,केहुवे अमर नइखे! भगवानो केहें भी कुछू विधान बा नीमनो-बाउर खाती संविधान बा! सुघर सरीरिया माटी में मिल जाई केकरा से कहीं, केहू बूझत नइखे! सब काया-माया भगवाने के बाटे एकदिन आगिये में जरहीं के बाटे! तबो अदमी केंचूल से मातल बाटे इहो बूझात बा अब मरहीं के बाटे! एक दूसरा के देखि के जरत बाटे एक दिन उहो जरी ई बूझत नइखे! अपना मनवे से बनत हुंसियार बाटे केकरा से कहीं ,बात बूझते नइखे! केतनो मनाईं मनवा मानत नइखे केतनो समझाईं बात बूझत नइखे! ----------------- राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

मन आसक्त हुआ देख कुरंग

मन आसक्त हुआ देख कुरंग ----------------------------------- नित्य नयन निरखत पुनि-पुनि कंचन कमल सुशोभित मन। मन गुलाब तन सुगंधित तन मन हुआ पल्लव-पल्लव। अधर पर अलि हुआ अधर हुआ अलि आसव-आसव। घायल प्रेम हुआ आतुर मन हो गया पल्लव-पल्लव। पुंकेसर पर मूर्छित अलि चहक - बहक गया तन-मन। मन आसक्त देखा कुरंग हो गया कुंज पल्लव पल्लव। देख सुरभि मन हुआ मुदित तन मन हुआ पल्लव पल्लव। ------------- राम बहादुर राय भरौली,बलियाउत्तर प्रदेश

डग डग घूमेला बेरोजगार हो

डग - डग घूमेला बेरोजगार हो! --------------------------------------- नया रंग में सभे बाटे रंगाइल सभे केहू अपने बा में भुलाइल। डग - डग घूमेला बेरोजगार हो नोकरी के फारमो नाहीं आइल। एगो दूगो फारम रहे भराइल परचा ओहू के लीक होई गइल। झरे पाके लागल हमरो बार हो लागताटे बुढ़ापा हमरो आइल। बाबू-माई करजा में गोताइल एकहू तीलकहरू नाहीं आइल। हीत-मीत टोला परोसा हंसता पढ़हीं में खेतो इनकर बेचाइल। पढ़-लिख के का तूंहूंवूं करबऽ पद चाहे पइसा नाहीं भेंटाइल। हाय पइसे के नसा बा धराइल के आपन के दूसर ना बुझाइल रोजी रोजगार के टोटा बाटे मन मोरा बाटे खूबे अकुताइल। केसे कहीं कुछ सूझते नइखे हो बिना नोकरी कामवे गड़बड़ाइल। उपरा से मंहगाई भइल डाइन बेरोजगारी से सब तड़फड़ाइल। ----------------- राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

आदमी जब बड़ा होता है, आदमी नहीं रह जाता है

आदमी जब बड़ा होता है ,आदमी नहीं रह जाता है ----------------------------------------------------------------- आदमी जब बड़ा हो जाता है, आदमी नहीं रह जाता है। जिसने सब किया है,सबसे पहले उसे ही भूल जाता है। पहले किसी से मिलता नहीं, मिले तो पहचानता नहीं है कहीं हमजोली दिख जाता ,उसे नज़रंदाज़ कर जाता है। अपना जमीर व जमीन भी,मित्रों के जैसे भूल जाता है। गांव की माटी का जन्मा , गांव से ही दूर हो जाता है। भूल से कभी गांव आता , कट्ठा-प्लाट,फ्लैट सुनाता है मुर्गी के दरबे में रहता , वही फोटो सबको दिखाता है। कोई पता पूछता है , बात वह इधर-उधर घुमाता है। लोगों की बातों में फंस जाता,नं गलत लिखवाता है। सोशल मीडिया में वो उम्र को कम करके ही दिखाता है उम्र ढल गई है फिर भी, नया नया फ़ैशन आजमाता है। शहर में एक से एक हैं, वहां भी सिमटकर रह जाता है। गांव गढ़ कहा जाता है, उससे भी महरूम हो जाता है। बड़े होने के चक्कर में,वह सब कुछ छोटा कर जाता है। शहरी बनने में अपनी, संस्कार-संस्कृति भूल जाता है -------------------- रचना स्वरचित एवं मौलिक @सर्वाधिकार सुरक्षित।। राम बहादुर रा...

कइसे समझाईं मन के कइसे मनाईं

कइसे समझाईं मन के कइसे मनाईं ----------------------------------------------- केकरा से कहीं हम दिलवा के बतिया दिनवा त कटि जाला,कटे नाहीं रतिया। रहि-रहि निरखीं हमहूं तोहरी सुरतिया देखि - देखि रिगावे हमके कोइलरिया। जिनगी हमार भइल बोझ हो संवरिया अंखिया से लोरवो बहता दिन रतिया। टुकुर-टुकुर ताकता चूड़िया कंगनवा देखि-देखि हंसि करे हमके अंगनवा। काटे दवुरे हमके अपने सेजरिया कबो देखीं फोन , कबो देखीं रहतिया। केकरा से कहीं हम दिलवा के बतिया दिन भर काम करीं,जागीं सारी रतिया। कइसे समझाईं मन के कइसे मनाईं अपने मनवा ना माने मन के बतिया। केकरा से कहीं हम दिलवा के बतिया दिनवा त कटि जाला,कटे नाहीं रतिया। ------------------- राम बहादुर राय भरौली, बलिया, उत्तर प्रदेश @followers

जब जब देखीं लउके तोहरे सुरतिया

जब जब देखीं लउके तोहरे सुरतिया --------------------------------------------- जब जब देखीं लउके तोहरे सुरतिया संगहीं के सब लोगे भइलन सवतिया। छम-छम बाजे जब तोहरे पायलिया मनवा सिवान होके देखेला रहतिया। जब जब हिलेला तोहरे कनबलिया तब तब छछने जियुवा हो संहतिया। जब जब देखिले हम मोहनी मूरतिया चहकेला मनवा जुड़ाई जाला छतिया। जब जब पहिरेलू धानी रंग चुनरिया अंचरा में तोहरा लउके किसमतिया। रात में चलेलू त उगेला अंजोरिया तोहरे के देखिके होखे भोरहरिया। केसिया देखत लजाले कारी बदरिया तोहरे से बुझाला दिन हवे कि रतिया। हंसेलू धइके अंचरा के कोरिया सुख-चैन उड़ जाला बेध देलू छतिया। मन करेला देखती तोहके दिन रतिया काहें मिलल तोहरा के सुघर सुरतिया। --------------------- राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

नयन के देखिके नयन लोर हो गइल

नयन के देखिके नयन लोर हो गइल ------------------------------------------- नयन के देखिके नयन लोर हो गइल याद में उनका देखते भोर हो गइल। सोचले ना रहीं कि एतना निष्ठुर होई अउरी निष्ठुर,निर्मोही कठोर हो गइल। का कहीं नयन के , धोखा खा गइल जेके चितचोर बूझनी, चोर हो गइल। नयन से नयन के सुख मिलते रहल जिनिगी हमार त लोरे-लोर हो गइल। बूझनी की जिनिगी में प्रीत मिलल नयन जबसे मिलल,अंजोर हो गइल। प्यार में मिलके हमसे दूर हो गइल नयन मिलते अउर कठोर हो गइल। रोवत-रोवत नयन याद करत रहल नयन के देख नयन थोर हो गइल। ------------------- राम बहादुर राय भरौली, बलिया ,उत्तर प्रदेश

धूप में नेह से नेह लगावल करिला

धूप में धूप से नेह हम लगावल करिला ------------------------------------------------ मई क धूप में धूप से नेह लगावत रहिला जे दुरदुरावे ओकरो के सजावल करिला। हम त एगो किसान-मजदूर के बेटा हंई केहू कतनो अंझुराइ,संझुरावल करिला। दुश्मन भी होई तबो नेह लगावत रहिला केहू के गिराईं नाहीं हम उठावल करिला। माटी-डांटी में खेलल-कूदल हमहूं बानी केहू से रीत-प्रीत खूबे लगावल करिला। धूप के ताप-साप सहे के आदतो बाटे धूप में दीप के बूते से बचावल करिला। धूर, गरदा, धूप त हमार जनमे के साथी शीत घाम संगे नेह से सुतावल करिला। मई क धूप में धूप से नेह लगावत रहिला प्रचंड धूपो के नेह से अपनावल करिला। आदमी के जात हम आदमी में रहतानी केहू केतलो उलझाई,सुलझावल करिला। ---------------------- राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश